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________________ १४ ] मेरु मंदर पुराण जाकर व्यापार करके अनेक प्रकार के रत्न संपादन करके लाया और आपके मंत्री पर विश्वास करके उन रत्नों को उनके पास रख दिये । जब वह रत्न मैं वापस मांगने गया तो उसने जवाब दिया कि मुझे कोई रत्न ही नहीं दिए न मैं तुमको जानता हूँ और बुरा भला कहकर अपने महल से मारपीट कर निकाल दिया । तब रानी ने कहा कि हे वणिक् ! यह सारी बातें तुमको राजा के सामने कहनी पड़ेंगी ।।२७७।। . वाळार तडतोन् मन्नर मन्नरतं शैग वन पोर् । तोळाल् विलक्कि मुरै केटरं पोट लागिर ॥ ट्राळाळ नल्ला विन् ट्रानिडुन् पूस नांळ । केळादोळिवा निदु वेन्नरु लैंड, केट्टाळ ॥२७८।। अर्थ-इस प्रकार कहकर महारानी रामदत्ता ने भद्रमित्र को बिदा किया और अपने पति सिंहसेन महाराज से जाकर विनम्रता से कहने लगी कि राजा का यह लक्षण है कि अपने राज्य के प्रजाजनों को सुख शांति है या नहीं-धर्म की स्थिति में कोई बिगाड तो नहीं है, कोई अन्याय तो नहीं करता है, दुष्टजन कोई विबाद तो नहीं करता, आदि आदि प्रजा की भलाई के लिए सारी बात देखना । यह राज' का कर्तव्य है कि प्रजा में सुख शांति रहे, अधर्मी नास्तिक लोगों का उच्चाटन करे तथा शत्रुओं को कोई स्थान न देना, शिष्टाचार का पालन करना-सदैव प्रजा के हित का ख्याल रखना। यह सब राजनीति तथा राजा का लक्षण है । हमेशा इस प्रकार की परिपाटी राजाओं की चली आ रही है। धर्मनीति व राजनीति को भूलना नहीं चाहिए । मुझे यह बातें कहना तो नहीं चाहिए, लेकिन जो बात मुझे समझ में प्राई, मैंने कहदी। राजन् ! आपके समान प्रजा पालक-शूरवीर राजा के राज्य में एक दुःखी वणिक् द्वारा प्रति दुःख से कहने वाली बात को आपने आज तक लक्ष्य देकर क्यों नहीं सुना? ऐसा रानी ने राजा से प्रश्न किया। राजनीति में कहा है कि "राजानः प्राणिनां प्रारणाः राजा प्रत्यक्ष देवता" इस उक्ति के अनुसार राजा संपूर्ण प्राणियों की रक्षा करने वाला प्रत्यक्ष देवता के समान होता है। राजा संपूर्ण जीवों का प्राण है ऐसा नीतिकारों का कहना है । एक मनष्य कदाचित यदि कोई अपराध करे तो देवता उस अपराधी को ही दंडित करता है तो राजा एक मनुष्य द्वारा अपराध किए जाने पर कई व्यक्तियों को दंड देता है । इस प्रकार पाप न्यायवान राजा हो । विचार करें ॥२७८।। मत्तकळिटा नळप्पान मत्तनेन्न मंगे। नितं वंदम् मरत्त पोळ दु तेरि नीदि । बेत्रावगया लुरप्पान् मत्तनल्ल नेन्न । मुत्तन्न पल्लाय मुरै नोइदु केळ मो वडान् ॥२७६।। अर्थ-सिंहसेन राजा अपनी पटरानी रामदत्ता की बात सुनकर कहने लगे कि यह वणिक पागल है । प्रतिदिन ऐसा ही कहता है। तब रानी कहने लगी कि यदि पागल होता तो वह अनेक-अनेक बातें बोलता, किन्तु वह तो वृक्ष पर चढ़ कर रोजाना एक ही बात को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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