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________________ मेरु मंदर पुराण [ १४१ अर्थ -जिस प्रकार एक शिकारी बहेलिया पक्षी को पकड़ने के लिये जाल बिछाकर अपने शरीर को सूखे पत्तों से ढककर बैठ जाता है और जब पक्षी पा जाता है तो उसको शीघ्र पकड़ लेता है उसी प्रकार यह शिवभूति ब्राह्मण लोगों को धोखा देकर उनको फंसाने के लिये विश्वास दिलाता है और जनता का विश्वास पात्र हो जाता है इसी प्रकार मैंने भी मत्री को विश्वासी समझकर रत्न संभलाये थे। अब वह मंत्री मुझे वापस लौटाता नहीं है। ।।२६८।। पडुमद याने विट्ट पासत्ति नायै विट्ट । कोडि नगर पेयन टन्नै कडिग वेंड्रमै चन्कूर ।। कडियवर पडियिर कंडु शैवदर कंजि.कालै । नेडियदोर् मरत्ति नेरि नित्तमा यळे तिट्टाने ॥२६॥ अर्थ-वह शिवभूति मंत्री विचारता है कि इस भद्रमित्र वणिक को हिंसक पशुओं कुत्ते आदि से मरवा डालना चाहिये । ऐसी आज्ञा मंत्री ने अपने कर्मचारी को दे दी। इस बात से महान् भयभीत होकर भद्रमित्र राजमहल के पास एक बड़ा वृक्ष था उस वृक्ष पर वह चढ गया वहां वही चर्चा करने लगा ॥२६६।। तूयनल्वेद नाण्गुम सोल्लिय जाति यादि । मेयनल्लमच्च नड्र, विरुदु मैयुरत्त लेंड्रम् ॥ तीइनर ट्रोळिल ने म तेरियान वैत्त सेप्पै । माय नी शैदु कोंडाल वरु पळि पाव मंड्रो ॥२७०॥ वह भद्रमित्र वृक्ष पर बैठा बैठा कहने लगा कि हे सत्यघोष कपटी ब्राह्मण ! चारों वेद, छह शास्त्र, अठारह प्राण प्रादि सभी को पढकर अपने आप को ज्ञानी पंडित तथा चार वर्गों में उत्तम ब्राह्मण कहलाता है । ब्राह्मण कुल में जन्म लिया है, राजा का मंत्री पद पाया है, विश्वसनीय बातें बनाता है इसी कारण इसका यश चारों ओर फैला हुआ है। हवन आदि करने वाला है, वैदिक लोगों का गुरु कहलाता है । ऐसा समझकर मैंने मेरे बहुमूल्य रत्नों की पेटी इनको सम्हलाई थी। मेरे दिये हुए रत्नों को हड़प करने से आगे चलकर इस अपकीर्ति और अपमान होगा। इसने इस कार्य से पाप बंध बांध लिया है। ऐसा संत्य समझे। ॥२७॥ कोट वेन् कुडयुं शीय वनयुं चामर युनीत्ताल । वेटिवेल वेदनेन्न नीयेन वेरि लादय ॥ कुट्रमेंडरिंदु मेन्न कुरईलेन सेप्प कोंडाय । मद्रिवो पूदिमाय मागुमिव्वैत्तय्या ।२७१॥ अर्थ-वह वणिक कहता था कि राजा सिंहसेन यदि राज्य शासन के प्रति कोइ लक्ष्य नहीं देगा तो यह राज्यशासन भी कुछ समय में नष्ट हो जायेगा, ऐसी संभावना है। क्योंकि न राजा पृथक है न मंत्री पृथक है। यह मंत्री पर द्रव्य को अपहरण करता है इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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