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________________ मेद मंदर पुराख १४० ] धर्म – उस सिंहसेन राजा ने वणिक् के द्वारा सारी चरचा को भली भांति समझकर सत्यघोष मंत्री से पूछा कि यह वरिगक जो कह रहा है यह क्या बात है, सच २ कहो । तब मंत्री यह कहता है कि राजन् यह बरिणक् न मालूम कहां से माया है, मैंने इसको पहले कभी देखा नहीं । एक दिन यह मेरे पास भाया और कहने लगा कि मुझे मेरे रत्नों की पेटी वापस दो तो मैंने उत्तर दिया कि मेरे पास रत्नों की पेटी तुमने कब रखी थी ? यह पागल है और मंत्री को जोर २ कहता हुआ गली २ में चिल्लाता रहता है ।। २६५ ।। करुममे इरेब केळाय कळवडून बिळवे योदुम | धर्म नलुरंक्कुनाने ताक्किल्ला कळवु शेग्यिन् ॥ बोरुवर मुलगिर कळ, करन बरिने येना । पेरियदोन् शब्दं शंद नरसतु पिर तेर ।। २६६॥ अर्थ- वह शिवभूति मंत्री कहता है कि हे महाराज ! मैने चोरी करना हमेशा पाप समझा है और ऐसी मै सब को शिक्षा देता हूं । क्या मैं उसकी चोरी करता था ? क्या में ऐसा काम कर सकता हूँ ? चोरी करने से इस जगत् में अनेक दुख भोगने पडते हैं । यदि में हो ऐसा कार्य करूं तो सारी प्रजा मेरे समान अनुकरण करेगी। इस प्रकार मंत्री के कहने से राजा तथा प्रजा को मंत्री का पूर्ण विश्वास हो गया, और राजा व प्रजा सब उस वणिक् को पागल समझकर आगे के लिये उन रत्नों की कोई खोज व तलाश वगैरह नहीं की ॥ २६६॥ Jain Education International परं येनिक्कळ वन् द्रन्नं पार्तिव नेन्नं पोल । मरंम्यव नॅड. कोंडान् शबदतल वंजि पुंडु ॥ पिररिवन् शं गं मोरा रेनये पिसनेश । कुरं उडो वेंड़, पिन्नु कूपिट्टा नीवि योदि ॥ २६७॥ अर्थ - तदनंतर वह भद्रमित्र श्रेष्ठी कहने लगा कि हे नगरवासियों ! इस मंत्री की चांडाल के वचन के समान बातें सुनकर लोग इसके वचनों पर श्रद्धा करते हो । मैं रत्नों की पेटी इनके हाथ में देकर फंस गया हूं और पागल के समान हो गया हूं। यहां के राजा ने भी उस मंत्री की मीठी मीठी बातों व तार्किक शब्दों को सुनकर उसकी बातों पर विश्वास कर लिया। कभी ये भी फंस जायेगा। इस सिंहपुरी नगरी के सभी लोग मुझे पागल बना कर सभी मेरी हंसी करते हैं । इस प्रकार अविरुद्ध बातें बोलता हुआ वह भद्रमित्र गली गली में घूम रहा है || २६७॥ शिरगम पर पेर्प नुडंवोलं सेडिइन् मोडि । परवेयं शिमिळ पिन, वांगुं पावियै पोल नीयुं ॥ मरं यब नरिव नेतुं मायत्त मरंतु नि ेन् । पेर लद मरिये कोडां येंडूवन् पोसक्केळा ॥ २६८ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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