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________________ ११२ ] -- - - - - - मेरु मंदर पुराण अर्थ-आदि अत रहित ऐसे मोक्ष सुख को प्राप्त करने के लिए युवराज पद को प्राप्त होने वाले हे प्रभू ! आप तपश्चर्या करके घातिया कर्मों का नाश करके केवल ज्ञान को प्राप्त करने वाले हैं, इसलिये तीन लोक के समस्त जीव आपकी स्तुति करते हैं ।।१६१।। पाडिनार् पखयेल्लाम् तलइन् मेल् वीळदमन्मे । लोडुवार तामळेला मुरुगु निड़, वंदु केटार ।। पीडिनलिरव नीडान पिरंगुदार निरंकोळ शेन्नि। याडुमा नागराजनवदिया लदनै क्कंडान् ॥१२॥ अर्थ-इस प्रकार नमि व विनमि राजकुमारों ने नम्रता व भक्तिपूर्वक संगीत के साथ अनेक प्रकार की स्तुति की। इस प्रकार भक्ति व संगीत करते समय इनके राग से मुग्ध होकर आकाश में उडने वाले सभी पक्षी नीचे उतर आये। रास्ते से आने जाने वाले पथिक भी इनके संगीत को सुनकर मुग्ध होकर वहीं स्तब्ध रह गये। उस समय श्री वृषभनाथ तीर्थकर ध्यान में मग्न होकर खडे थे। इन सब विषयों को धरणेंद्र ने अपने अवधिज्ञान द्वारा जान लिया ॥१६२।। कंडवन कलैगळेलाङ कडन्दुप शांति सेड़। पंडित नोरुव नागिप्पादंवाय कैमुगात्तार् ॥ पुण्डरी गौवेन्क पोल मैयै नडिप्पान पोलक् । कोण्डदोर लेडन्तन्नालिरै वनैकुरुग वंदान् ॥१६३ ॥ अर्थ-उस धरणेंद्र ने ऐसा वेषधारण किया कि यह महान विद्वान शास्त्री हैं, उसने गले में हार-माला आदि धारण कर जहां भगवान वृषभदेव ध्यानारूढ थे उस स्थान पर वह आ गया ।।१६३॥ वंदवन् मैन्दर् सँगै वडिवुकण्डु वन्दुवानिर् । सुन्दर मलर्ग डूविइरै वने वनंगिच्चोन्ना ॥ निन्दिरकिवर्क रैवन सेन्दामरै यडिक्कि सैविलाद । वंदरं पलवू सैदोररोविलीर् पोगवेडान ॥१९४॥ __ अर्थ-वह धरणेंद्र वहां पाया और नमि, विनमि को भगवान आदिनाथ की स्तुति करते देखा । उस स्तुति व स्तोत्र को देखते हुए अत्यंत मानंदित व संतोषप्रद हुआ। तत्पश्चात् धरणेंद्र भी स्तुति करने लगा, पुष्प वृष्टि की, बाद में वह धरणेंद्र इन दोनों कुमारों को देखकर कहने लगा कि दे अज्ञानी बालकुमारों! भगवान के ध्यान में इस प्रकार विघ्न डालना, यह कार्य तुम्हारा ठीक नहीं। इस स्थान को छोडकर आप अन्य स्थान पर चले जाप्रो ।।१६४।। एन्एलुङ कुभरर सुन्ना रीरैवन्द्रन पेरुमैयामे । योन्रिमदारिदुनी पोमुङ करमत्तमेले ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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