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________________ मेरु मंदर पुराण [ ११३ यरनिलरिवि लामै युमैवन्दडेयु मेन्ड्रार् । किन्ड नी रिर्रवन्ट्रन्नयिर क्किर देन्फोकोलेरान् ॥१६॥ अर्थ-इस प्रकार धरणेंद्र के वचन सुनकर दोनों कुमार कहने लगे कि आप ही पंडित हो जो हमें शिक्षा देने आये हैं । हम आप से अच्छा जानते हैं, आपको हमें इस विषय में विशेष कुछ कहने की आवश्यकता नहीं। आप जिस काम को आये हैं वही कार्य करो और जिस रास्ते से आये हो उसी रास्ते से चले जाओ। हमारे संबन्ध में और कुछ कहने को आवश्यता नहीं । यदि नहीं मानोगे तो आपका अपमान होगा। इस कारण शीघ्र यहां से चले जाओ । इस पर धरणेंद्र ने कहा कि आप भगवान के चरण पकडकर क्या मांग रहे हैं? ॥१९॥ अरसरायचिलर नाट्टियरु पोरुळोंदुमन्ने । विरमिनार कण्डं सैंदुवेन्डु वार्कोन्दुपोन्दा ॥ नरसरे नांगळेलिंग नकवणिक्कु वन्दो मेन्न । उरैसैदपोरु लिंगुण्डो वुरुवना यिरैवमिराल् ॥१९६॥ अर्थ-इन वृषभनाथ तीर्थकर ने सभी राज्य ऐश्वर्य आदि तो दे दिया और अब यहां तपश्चरण कर रहे हैं । हम दोनों राजकुमार वृषभनाथ भगवान् के पास राज्य मांगने के लिये आये हैं। इस प्रकार दोनों बालकुमारों ने कहा! इस पर धरणेंद्र ने उत्तर दिया कि तुम जिस राज्य संपदा की भगवान् से मांग कर रहे हो वह उनके पास नहीं है, वे कहां से देंगे ।।१६६॥ उलगड, रुडय्य कोमार कोंड, मट्रिल्ल येंडोर् । पलदरुदंड तीरा पळं पित्तर् नीविरेन्न । निलमेलाम् भरतनलि येवनुळं सेल्लमेंड्रा। नुलगिनुक्कुरुदि सोल्लउम्मयो विडुत्त देड्रार् ॥१७॥ अर्थ-तीन लोक के नाथ होने वाले वृषभनाथ स्वामी के पास कौनसी संपत्ति नहीं है? इनके पास सारी संपत्ति व द्रव्य भरा हुआ है। इसलिये धरणेंद्र तुम कुछ समझते नहीं हो पागल के समान दीख रहे हो। क्या वृषभनाथ स्वामी के पास संपत्ति को कमी है? कोई कमी नहीं है। तुमको कुछ मालुम नहीं है। किसी भी प्रकार की गडबड मत करो। तब धरणेंद्र ने दोनों कुमारों से कहा कि इस समय षट्खंड का स्वामी भरत चक्रवर्ती है। जो कुछ मांगना हो उनके पास जाकर मांगो। तब राजकुमार कहने लगे कि क्या संसार में तुमही विद्वान हो? हमें तुम ज्ञान सिखलाने को आये हो। जिस तरह पौरों को ज्ञान सिखाते फिरते हो वैसे ही क्या हमें भी ज्ञान सिखाने आये हो? ॥१९७॥ मरुविला गुणति नीगळ वडिप्रोडु वाक्कुंडेनु । मरिविनार शिरिईरशाळ वप्पनोरेलुम् केमिन् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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