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________________ मेरु मंदर पुराण [ १११ दिल मडिगाळ वंदन मन्ने मुक्कु । तंवपिन नंडि पोगोयें. ताळ तोत्तिनारे ॥१८॥ अर्थ -ये राजकुमार वृषभदेव भगवान को तीन बार नमस्कार करके उनकी स्तुति करने लगे। तत्पश्चात् वे दोनों राजकुमार वृषभदेव भगवान् से जो तपश्चरण में लीन थे अनेक देशों को मांगने लगे और मांगते २ कहने लगे कि हे प्रभु! आपने अन्य सभी राजकुमारों को देश, राज्य, ऐश्वर्य प्रादि बांट दिये । हम उस समय प्राये नहीं थे। इसलिये स्वामिन् ! हम अभी पाये हैं, दया करके कुछ ऐश्वर्य, देश आदि हमको भी दीजिये। इस प्रकार योग में मग्न हुए प्रादिनाथ भगवान के चरण पकड कर ये दोनों राजकुमार मांग रहे थे कि देश और ऐश्वर्य हमको भी मिलना चाहिये-हम दूर से आये हैं, और जब तक आप हमें नहीं देंगे हम यहां से नहीं जायेंगे ।।१८।। मूंड लुगमुत्तवर मुत्तिक्किळवरसा। यांड वनुत्तरत्त लंड्रमरं वाय नीये ॥ यांड वनुत्तर लंडमरंदु वंवाये । मूड लग मोतिय वार शोल्ल मुडियादे ॥१६॥ अर्थ-इस तीन लोक के समस्त प्राणी आपकी स्तुति करने आते हैं और मोक्षरूपी युवराज पद को प्राप्त करने के लिए पूर्व जन्म में पंचानुत्तर नाम के अहमिंद्र स्वर्ग में प्रापने जन्म लिया था। वहां के वैभव भोग प्रादि को भोग कर वहां से चयकर इस मध्यलोक में आकर वृषभनाथ तीर्थकर हुए। इस तीन लोक में रहने वाले सभी जीव प्रापकी जो स्तुति करते हैं उसके वर्णन करने में हम समर्थ नहीं हैं। वह स्तोत्र स्वर्गावतरण जन्माभिषेक के समय में किया हुआ है ।।१८६॥ अंतरमुडिवर मुसि किळवरसा । मंदरसिन माउशिरप्पमरं वाय नीये॥ मंदरसिन मांडशिरप्पमरंदु मन्नुलग। संदरत्तै नोक्कु मरसळिसय नीये ॥१०॥ अर्थ-शाश्वत मोक्षपुरी के अधिपति होने वाले हे स्वामी ! पापका महामेरू पर्वत पर जन्माभिषेक देवों के द्वारा किया गया। हे स्वामी! इस भूमि पर अवतार लेकर माप निर्विघ्नता से और दोषरहित राज्य का प्रतिपालन करने वाले हुए हैं ।।१०।। मारियोउंद मिला मुशिकिळ बरसाय । मावबनाय मशिद मिशेयमरं वाय नीये। मावबनाय मनिन् मिशेयरं बोय वान पुगळे । योबिय मूकलगु मेत्तवारंडो ॥१६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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