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________________ ११. ] मेर मंदर पुराण मनेक विद्याधरों को नहीं छोडा और क्रोध से गर्जना करते हुए कहा कि इन सब विद्याधरों को मैं समुद्र में उठाकर फेंकूगा । १८४।। नीदि दानत्तिनालेन विनेगळं वड़ वीरन् । पादत्तामरंगळे दि परिविन्न किरिये मुद्रि। प्रादि दावत्त नामत्तमर निद्रवन नोक्कि । कोपतापत्तै नोकि गुएंकोळ कूर लुट्रान् ॥१८५।। अर्थ-देवों ने क्रम पूर्वक पाठों कर्मों को नाश करने वाले उन संजयंत मुनि की स्तुति को। तदनंतर परिनिर्वाण कल्याण को पूर्ण करके आदित्य नाम के कल्पवासी देवने धरणेंद्र द्वारा अत्यंत क्रोध भरे भाव से उन किए जाने वाले कृत्यों को देखकर मनमें विचार किया कि इस घरवंद्र की क्रोधाग्नि को शांत करने का उपाय करना चाहिये और इस प्रकार उसने कहना प्रारंभ किया:- ॥१८॥ इवन शैव कुटुमेन कोलेरेदे पोलिरुवं वेळ । इवनशद पोळ दिर् शाल वरुळ शय वेडंमंद्रि ।। इवन ट्रन्नै यनैयार इन कोवत्त किडमु मल्लर् । उदिन्न मौड़, केळा उरैक्किड़े नुरगर् कोवे ॥१८६॥ अर्थ-हे धरणेंद्र! आप मेरी बात पर लक्ष्य देकर सुनो। इन विद्याधरों अथवा विद्युदंष्ट्र द्वारा की हुई गलती की कौन सी बात है। पशु के समान रहनेवाले इन विद्याधरों ने क्या अपराध किया है, सो कहो। इस समय आपने जो इनपर क्रोध किया है यह योग्य नहीं है । प्रापको मैं इसका सभी हाल विस्तार पूर्वक सुनाता हूं, संतोष के साथ सुनो।१८६ प्रादि वेदत्त नादन पुरुविद उलगमेत्त । नीदि माववत्तै तांगि निरंद योगतिनिड्र॥ पोदिनादरत्तीन वंदार भोगवातारत्ति नार्गळ । तीदिला गुणात्ति नार्गल विनमियु नवियु वार् ॥१८७॥ प्रर्थ-प्रथम तीर्थकर भगवान वृषभदेव के दीक्षा लेने के बाद उनके साथ ही घटी हुई घटना के सम्बन्ध में थोड़ा सा विवेचन करूगा श्री आदिपुराण में प्रथमानुयोग विषय में आये हुए विवेचन को सुनो। कच्छ और और महाकच्छ के नमि और विनमि यह दो राजकुमार थे। जहां भगवान वृषभदेव तपस्या कर रहे थे, वहां वे दोनों राजकुमार पाये और अनन्य भक्ति करते हुए उनके सन्मुख खड़े हो गये ॥१७॥ वंदवरिरेवन् पावम् वलंकोंडु वनंगि वाळ ति । मंद मिनिदियु नाडु मरसरुक्कीव वन्नाळ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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