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मेरु मंदर पुराण
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भावार्थ-शब्द, बध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, तम, छाया, उद्योत और आताप, ये सभी पुद्गल की पर्याय हैं। अब इसको विस्तार के साथ बतलाते हैं।
भाषात्मक और प्रभाषात्मक ऐसे शब्द दो प्रकार हैं। उसमें भाषात्मक शब्द प्रक्षरात्मक तथा अनक्षरात्मक रूप से दो प्रकार का है। उसमें भी अक्षरात्मक भाषा संस्कृत प्राकृत और उनक अपभ्रंश तथा पेशाची प्रादि भाषा के भेद से प्राय व म्लेच्छ मनुष्यों के व्यवहार के कारण अनेक प्रकार की है । अनक्षरात्मक भाषा द्वीन्द्रियादि त्रस जीवों में तथा सर्वज्ञ की दिव्यध्वनि में है। प्रभाषात्मक शब्द भी प्रायोगिक और वैशेषिक भेद से दो प्रकार के हैं। उनमें बोरणा आदि के शब्द को तत और ढोल आदि के शब्द को वितत कहते हैं । मंजीरे और तार आदि के शब्द को धन और बांसुरी आदि के शब्द को सुषिर कहते हैं । कहा भी है कि:
तत बोणादिकं ज्ञेयं विततं पटहादिकम् । घनं तु कांस्थतालादि मुषिरं वंशादिकं विदुः ।।१।।
इस श्लोक में कहे हुये क्रम,से प्रायोगिक शब्द चार प्रकार के हैं। विश्रुसा अर्थात् स्वभाव से होने वाला वैश्रसिक शब्द बादल आदि से होता है वह अनेक प्रकार का है।
विशेष-शब्द से रहित निज प्रात्मा को भावना से छूटे हुये तथा शब्द प्रादि मनोज्ञ अनमोज पंच इन्द्रियों के विषयों में आसक्त जीवों के दुस्वर तथा सुस्वर नामकर्म का जो बंध किया है उस कर्मबंध के अनुसार यद्यपि जीव में शब्द दीखता है तो भी वह जीव के संयोग के निमित्त से व्यवहार नय की अपेक्षा जीव का शब्द कहा जाता है, पर निश्चय नय से वह शब्द पुद्गलमय ही है।
मिट्टी आदि के पिडरूप जो अनेक प्रकार का बंध है वह तो केवल पुद्गल बंध है और जो कर्मरूप कर्मबंध है वह जीव और पुद्गल के संयोग से होने वाला बंध है । विशेष यह है कि कर्मबंध से उत्पन्न निजशुद्ध भावना से रहित जीव के अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नय से द्रव्य बंध है और इसी तरह अशुद्ध निश्चय नय से रागादि रूप भावबंध कहा जाता है । यह भी शुद्ध निश्चयनय से पुद्गल का ही बंध है । बेल आदि की अपेक्षा बेर आदि फलों में सूक्ष्मता है और परमाणु में साक्षात् सूक्ष्मता है। बेर प्रादि की अपेक्षा बेल आदि में स्थूलता है । तीन लोक में व्याप्त महास्कंध में सबसे अधिक स्थूलता है। समचतुरस्र संस्थान, न्यग्रोधपरिमंडल, स्वाति, कुब्जक, वामन और हुण्डक ये छह प्रकार के संस्थान ब्यवहार नय से जीव के होते हैं, किन्तु संस्थान शुन्य चित् चमत्कार प्रमाण मात्र जीव से भिन्न होने के कारण निश्चय नय की अपेक्षा संस्थान पुद्गल के ही होते हैं।
जो जीव से भिन्न गोल त्रिकोण चौकोर आदि प्रकट अप्रकट अनेक प्रकार के संस्थान हैं वे भी पुद्गल ही हैं । गेहूं आदि के चूर्ण रूप से तथा दाल खण्ड प्रादि रूप से अनेक प्रकार का भेद जानना चाहिये । दृष्टि को रोकने वाला अंधकार है उसको तम कहते हैं। पेड़ प्राधि की अपेक्षा से होने वाली तथा मनुष्य प्रादि की परछाई को छाया जानना चाहिये । चन्द्रमा के विमान तथा जुगुन (खद्योत) आदि तियंच जीवों में उद्योत होता है। सूर्य के विमान में
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