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________________ ६० । मेरु मंदर पुराण साधु भवनवासी कल्प तक जाते हैं। तिर्यंच गति के जीव भवन लोक आदि में सहस्रार कल्प तक क्रम से स्वपरिणामों के अनुसार उत्तम गति में जाते हैं । भावार्थ -- सम्यग्दर्शन धारण किया हुआ मनुष्य तथा तिर्यंच व्रत धारण करके सौधर्म आदि अच्युत स्वर्ग तक जाते हैं। और निरतिचार मरणुव्रतों को धारण करके मनुष्य भवनवासी कल्प तक जाते हैं और तिर्यंच जोव भवनवासी सहस्रार कल्प तक अपने परिणाके अनुसार जाते हैं ।। ७६ ।। भोगनिल बिलंगु नरर् पोरु दिय नरकाक्षियरेल् । नागमोदलाम् सोदनीशान् नभिडुवर् ॥ मोग मिच्छार् भवनर् व्यंतरर् ज्योतिडराबा । रागु भवरति शानुत्तरत्तं य मरतेळिवांर् ॥७७॥ अर्थ - भोग भूमि में रहनेवाले तिर्यंच व मनुष्य सम्यग्दृष्टि जोव पहले सौधर्म स्वर्ग में जाते हैं । तीव्र मोहनीय कर्म से युक्त मिथ्यादृष्टि जीव भवनवासी व्यन्तर ज्योतिषी देवों में जाते हैं । क्षायिक सम्यग्दृष्टि महामुनि तपश्चरण के प्रभाव से नवानुदिश व पंचानुत्तर में उत्पन्न होते हैं ।। ७७ ।। Jain Education International मीना पेण नार्कालु कालिलबुं । बानू मेल वरुव तवळ व कुरिलवु ॥ मेन मेल वेळ नरगिन् कीळ, शेल्ला मेर्चे । मेनांगु वीडु तवं विरदं विलंगा सुरये ॥७८॥ अर्थ- स्वयम्भू रमरण समुद्र में रहनेवाले महामच्छ, मनुष्याकार रहनेवाले जीव, सर्प इत्यादि और आकाश में संसर्ग करने वाले पक्षी आदि भूमि गोचरी, मन सहित गिरगिट वगैरह जीव सातवें नर्क तक जाते हैं । स्त्री छठवें नर्क तक जाती है, इससे ग्रामे नहीं । चतुष्पाद जीव. पांचवें नरक तक जाते हैं । सप आदि जीव चौथे नरक तक जाते हैं । पक्षी आदि जीव तीसरे नर्क तक जाते हैं। कछुवा आदि जीव दूसरे नर्क तक जाते हैं । इस प्रकार ऊपर कहे अनुसार जीव अपने २ परिणामों के अनुसार नर्कों में जाते हैं। पहले नर्क से चौथे नर्क तक के जीव इस मनुष्य लोक में आकर मनुष्य पर्याय प्राप्त कर जिन दीक्षा लेकर दुर्द्धर तपश्चरण के द्वारा कर्म क्षय करके मोक्ष जाते हैं। क्षायिक सम्यग्दृष्टि पांचवें नक से आये हुये जीव तपश्चरण के द्वारा मोक्ष नहीं जा सकते छठे• नर्क से आया हुआ जीव अणुव्रत धारण कर एकदेश व्रत को धारण करता है। सातवें नर्क से आया हुआ जीव तियंच गति में उत्पन्न होता है ।। ७८ ॥ । इंदिय मुड्रिना लुलगुर्मेगुमा । बिना नाळिगे एगत्त बाळ मे For Private & Personal Use Only " www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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