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श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र
अर्थ : कर्म (व्यापार) से श्रमणोपासक को पन्द्रह कर्मादान
(कर्म के आदान हेतु) जानने के योग्य हैं। (किन्तु) आचरण के योग्य नहीं हैं। जैसे कि-अंगार (कोयलों) का कर्म (व्यापार) करना, वन (वन काटने) का कर्म (व्यापार) करना, साड़ो (गाड़ी बनाने) का कर्म करना, भाड़ी (भाड़े पर घोड़ा बैल आदि), चलाने का कर्म करना, फोडी (जमीन खोद कर खान आदि का कर्म (व्यापार) करना। दांतों का व्यापार करना, केश, (केशवती-दासी आदि) का व्यापार करना, रस (मदिरा आदि) का व्यापार करना, लाख का ब्यापार करना, विष का व्यापार करना। यन्त्र (कोल्हू) से पीडन (पीलने आदि) का कर्म करना, खस्सी का कर्म करना वन में आग लगाने का कर्म करना, सरोवर, तालाब आदि के सूखाने का कर्म करना, वेश्या आदि कुलटा नारियो का पोषण करके उन से आजीविका चलाने का कर्म (व्यापार) करना । जो मैंने दिवस-सम्बन्धी अति
चार किए हो तो उसका पाप मेरे लिए निष्फल हो । व्याख्या : उपभोग-परिभोग :
जीवन भोग से भरा हुआ है । जव तक जीवन है, भोग का सर्वथा त्याग तो नहीं किया जा सकता। हाँ, आसक्ति को कम करने के लिए भोग की मर्यादा की जा सकती है । जैन धर्म गृहस्थ के लिए भोगाशक्ति कम करने तथा उस के लिए उपभोग-परिभोग में आने वाले भोजन
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