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८८.
श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र
मर्यादा करना, पेय (पीने योग्य पदार्थों) की मर्यादा करना, भक्ष्य (खाने योग्य पदार्थों) की मर्यादा करना, ओदन (चावल) की मर्यादा करना, सूप (दाल) की मर्यादा करना, विकृति (विगय) की मर्यादा करना, शाक (साग) की मर्यादा करना; मधुर (मीठे फल आदि) की मर्यादा करना, जेमन (भोजन) की मर्यादा करना, पानीय (जल) को मर्यादा करना, मुख-वास (पान सुपारी, इलायची आदि) की मर्यादा करना, वाहन (सवारी) की मर्यादा करना, शयन) (शय्या आदि) की मर्यादा करना, उपानत (जूतों) की मर्यादा करना, सचित्त पदार्थों की मर्यादा करना, द्रब्य (विविध पदार्थों) की मर्यादा करना। इत्यादि जो परिमाण (मर्यादा) किया, उससे अधिक उपभोग-परिभोग के सेवन का प्रत्याख्यान (त्याग) करना। जीवनपर्यन्त, एक करण तीन योग्य से, न करू मन से, वचन से, काय से । सप्तम उपभोग-परिभोग-व्रत दो प्रकार का है । वह इस प्रकार से-भोजन से और कर्म (व्यापार) से । उसमें भोजन-सम्बन्धी व्रत के पांच अतिचार श्रमणोपासक. को जानने के योग्य है, (किन्तु) आचरण के योग्य नहीं है। जैसे कि त्यागी हुई सचित्त वस्तु का आहार (भोजन) करना, सचित्त-संयुक्त वस्तु का आहार करना अप्पओलि (कम पकी या अधयकी) औषधि (फली या धान्य आदि) का भक्षण (सेवत) करना,
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