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व्याख्या
इच्चाईणं जहापरिमाण कयं, तओ अइरित्तस्स उवभोग-परिभोगस्स पच्चक्खाणं । जावज्जीवाए, एमविहं तिविहे. न करेमि, मणसा, वयसा, कायसा । सत्तमे उवभोग-परिभोगबए दुविहे पन्नते । तंजहा-भोयणाओ य, कम्मओ य । तत्थ एवं भोयणाओ समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियब्बा, न समायरियन्वा । तं जहा-सचित्ताहारे, सचित्त पडिबद्धाहारे, अप्पओलिओसहि-भक्खणया, दुप्पओलिओसहि-भक्खणया, तुच्छोसहि-भक्खणया । जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । सप्तम उपभोग-परिभोग-परिमाण-व्रत है-उपभोगपरिभोगविधि का प्रत्याख्यान करना । उल्लणिया (अङ्ग पौंछने का वस्त्र) विधि उसकी जाति एवं संख्या) की मर्यादा करना, दन्तवन (दतौन) विधि की (मर्यादा) करना, फलों की मर्यादा करना, अभ्यंगन (मालिश) की मर्यादा करना, उद्वर्तन (उवटन) की मर्यादा करना, मज्जन (स्नान) की मर्यादा करना, वस्त्र की मर्यादा करना, विलेपन (लेपन या लेप) की मर्यादा करना, फूलों की मर्यादा करना, आभूषणों की मर्यादा करना, धूप की
अर्थ :
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