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श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र
तिर्यग्-दिशा-परिमाणातिक्रम :
तिरछी दिशा में जाने-आने के लिए जो क्षेत्र मर्यादा में रखा है, उस क्षेत्र का भूल से उल्लंघन हो जाना। क्षेत्र-बृद्धि :
एक दिशा की स्वीकृत मर्यादा में कमी कर के दूसरी में मिलाने को क्षेत्र की वृद्धि कहते हैं । यह व्रत का दूषण है । स्मति-भ्रंश :
क्षेत्र की स्वीकृत मर्यादा को भूल कर मर्यादित क्षेत्र से आगे बढ़ जाना, अथवा गृहीत मर्यादा का ही स्मरण न रहना स्मृति-भ्रश है ।
सप्तम उपभोग-परिभोग-परिमाण-व्रत मूल : सत्तमे वए उपभोग-परिभोग-विहि पच्चक्खा
यमाणे, उल्लणियाविहिं, दंतवणविहिं, फलविहि, अब्भंगण-विहि, उव्वट्टण-विहिं, मज्जणविहिं, वत्थ-विहि, विलेवण-विहिं, पुप्फ विहिं, आभरण-विहिं, धूवण-विहिं, पेज्ज-विहिं, भक्खण-विहि, ओदण-विहि, सूव-विहि, विगयविहिं, साग-विहि, महुर-विहिं जेमण-विहिं, पाणीय-विहिं, मुह-वास-विहिं, वाहण-विहिं, सयण-विहि, उवाहण-विहि, सचित्त-विहिं, दव्व-विहिं करेमि ।
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