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क्ष्याख्या
ध्याख्या: दिशा :
दिशा का अर्थ है-दिक् । दिशाएँ तीन हैं-ऊर्ध्वदिशा, अघोदिशा और तिर्यदिशा । अपने से ऊपर की ओर को ऊर्ध्वदिशा, नीचे की ओर को अधोदिशा, तथा दोनों के बीच की तिरछीदिशा को तिर्यदिशा कहते हैं । तिर्यदिशा के चार भेद हैं-पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण । चार दिशाओं के चार कोणों को ईशान आदि चार विदिशा कहते हैं, ये भी तिर्यदिशा हैं। चार दिशा, चार विदिशा तथा ऊर्ध्व और अधः ; इन सबको मिला कर दश दिशाएँ होती हैं। षष्ठ दिशा-परिमाण-व्रत :
षष्ठ दिशा-परिमाण-व्रत हैं-ऊँची नीची और तिरछी दिशा का परिमाण करना। पापाचरण के लिए गमन-आगमन आदि क्षेत्र को विस्तृत करना साधक के लिए निषिद्ध हैं। राजा जिधर भी दिग्विजय को निकलते हैं, संहार मचा देते हैं। व्यापारी व्यापार को निकलते हैं, तो राष्ट्रों का शोषण कर लेते हैं अतः भगवान ने दिशा व्रत का विधान किया है, कार्यक्षेत्र की मर्यादा बांधो जाती हैं, जिससे जीवन संयमित होता है। अतिचार :
षष्ठ दिशा-परिमाण-व्रत के श्रमणोपासक को पाँच अतिचार जानने योग्य हैं, किन्तु आचरण के योग्य नहीं। वे इस प्रकार हैंऊर्ध्वदिशा-परिमाणातिक्रम : ____ ऊर्ध्व दिशा में यातायात करने के लिए जो क्षेत्र मर्यादा में रखा है, उस क्षेत्र का भूल से उल्लंघन हो जाना । अधोदिशा-परिमाणातिक्रम : .
नीची दिशा में जाने-आने के लिए जो क्षेत्र मर्यादा में रखा है, उस क्षेत्र का भूल से उल्लंघन हो जाना।
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