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________________ ७८ श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र अतिचार : __ ब्रह्मचर्यव्रत के पाँच अतिचार हैं, जो श्रमणोपासक को जानने योग्य तो हैं, (परन्तु) आचरण के योग्य नहीं । वे इस प्रकार से हैंइत्वरिक-परिगृहीतागमन : कुछ समय के लिए पैसा देकर रखैल स्त्री को पत्नी के रूप में रखना, और उसके साथ गमन करना । स्त्री भी रखैल पति रख लेती हैं, जैसे आजकल पश्चिम के देशों में है । उक्तव्रतकी साधना करने वाले को ऐसा करना उचित नहीं है । अपरिगृहीता-गमन : जो विवाहित न हो, ऐसी वेश्या तथा विधवा, परित्यक्ता आदि स्त्री के साथ कामभोग का सेवन करना । स्त्री का विधुर आदि के साथ सम्बन्ध रखना । यह भी व्रत की सीमा से बाहर है । अतः त्याज्य है । अनंग-क्रीड़ा : ____ अप्राकृतिक रीति से कामचेष्टा करना । कामसेवन के लिए जो प्राकृतिक अंग हैं, उनके अतिरिक्त शेष समस्त अंग, काम सेवन के लिए अनंग हैं । उन से कामक्रीड़ा करना अनंग-क्रीड़ा है । पर-विवाहकरण : दूसरे के लड़के लड़कियों का विवाह कराना । कर्तव्य-वश अपने कुटुम्बीजनों के लड़के-लड़कियों का विवाह करना पड़े, तो वह अतिचार में नहीं होगा। परन्तु किसी लोभ वश दूसरों के विवाह का जोड़१. बेश्या, विधवा या परि यक्का.......! -'गृहस्थ-धम' में पूज्य जवाहरलालजी म. - भाग २, पृ० २१० पाणि-ग्रहण की हुई पत्नी से भिन्न वेश्या, कन्या, विधवा...... ! -डपासकदशांग' में पूज्य घासीलालजी म० पृ० २६८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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