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श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र
ताला तोड़ना, किसी की पड़ी हुई वस्तु को ले लेना तथा दूसरे की वस्तु को बिना अनुमति के उठा लेना !
अतिचार :
इस तृतीय अणुव्रत के पाँच अतिचार है। इसके चार दूषण भी हैं-अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार और अनाचार । व्रत का एक देश से ण्डित होना अतिचार है और सर्वदेश से भंग होना अनाचार है। प्रस्तुत अणुवत के पाँच अतिचार इस प्रकार से हैं, जो श्रमणोपासक को जानने के योग्य तो हैं, (परन्तु) आचरण योग्य नहीं हैं। स्तेनाहत :
चोर द्वारा चुराई वस्तु को लेना, स्तेन-आहृत है। चोरी की वस्तु सदा सस्ती बेची जाती है। जिससे लेने वाले को लोभ आ जाता है । चोर की चुराई वस्तु को लेना अतिचार है। तस्कर-प्रयोग :
चोर को चोरी करने की प्रेरणा देना, तस्कर-प्रयोग है। चोरी करने वाले के समान चोरी कराने वाला भी पाप का भागी है। चोर को चोरी करने में सहायता देना भी तस्कर प्रयोग है। विरुद्ध-राज्यातिक्रम :
जो राजा या देश परस्परविरोध रखते हैं, लड़ते हैं, उन राज्यों को विरुद्धराज्य कहते, हैं। विरुद्ध राज्य में जाने-आने को विरुद्ध राज्य का अतिक्रम, उलंघन कहते हैं । अथवा विरुद्ध राज्य में व्यापार आदि के लिए चोरी से प्रवेश करना । कूट-तोल कूट-मान : ___ कम तोलना और कम नापना, कूट-तोल एवं कूट-मान है। किसी से कोई वस्तु लेते समय अधिक तोलना, अधिक नापना और देते समय कम तोलना और कम नापना । लेने-देने के नाप-तोल अलग-अलग रखना भी पाप है।
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