________________
व्याख्या
हो, सहायता दी हो, विरुद्ध (विरोधी) राज्य में अतिक्रम (व्यापार आदि निमित्त) प्रवेश किया हो, कूट (झूठा) तोल कूट (झठा) नाप किया हो, वस्तु में तत्प्रतिरूपक (तत्-सदृश) वस्तु का व्यवहार (मिलावट) किया हो। जो मैंने दिवस-सम्बन्धी अतिचार किया हो, तो
उसका पाप मेरे लिए निष्फल हो । व्याख्या : अस्तेय :
- दूसरे की सम्पत्ति पर अनुचितरूप में अधिकार करना चोरी है। मनुष्य को अपनी आवश्यकता, अपने श्रम के द्वारा प्राप्त साधनों से ही पूर्ण करनी चाहिए। यदि किसी अवसर पर दूसरे की किसी वस्तु को लेना भी हो, तो बिना उसकी अनुमति के नहीं लेना चाहिए । बिना उसकी आज्ञा के अथवा बल-प्रयोग से लेना स्तेय है, चोरी है । गृहस्थजीवन में साधक पूर्णरूप से चोरी का त्याग नहीं कर सकता, तो कम से कम सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टि से सर्वथा अनुचित चोरी का त्याग तो करना ही चाहिए। जीवन को अधिक से अधिक प्रामाणिक बनाने का प्रयत्न करना चाहिए । मनुष्य को अपने क्षणिक लाभ एवं स्वार्थ के लिए अपने धर्म को भी नहीं भूलना चाहिए । Dishonesty is a forsaking of permanent for temporary advantages. अप्रमाणिक होना अथवा चोरी करना, क्षणिक लाभ के लिए शाश्वत श्रेय को नष्ट करना है।
तृतीय अणव्रत :
तृतीय अणुव्रत है-स्थूल अदत्तादान (चोरी) से विरत होना । दत्त का आदान धर्म है, और अदत्त का आदान अधर्म । चोरी पाच प्रकार से की जाती है। जैसे-संध लगाना, गाँठ खोलना, किसी का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org