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७.
श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र
भूमि-अलीक:
भूमि के लिए अलीक बोलना, असत्य बोलना । भूमि के अन्य अचित्त वस्तुओं का ग्रहण कर लिया जाता है। सोना चॉदी-आदि के विषय में भी असत्य नहीं बोलना चाहिए । न्यासापहार :
किसी को धरोहर रखी वस्तु के लिए इन्कार कर देना । धरोहर को न लौटाना । इसकी न्यास ( रखी हुई) वस्तु का अपहरण (चुराना) कहते हैं। कूट-साक्ष्य :
अपने लाभ के लिए और दूसरे की हानि के लिए, जो न्यायाधीश अथवा पंच के सम्मुख झूठी गवाही दी जाती है, उसको कूट-साक्ष्य, कूटसाक्षी कहते हैं। अतिचार :
प्रथम अणुव्रत की भाँति इसके भी पांच अतिचार है। व्रत के चार दूषण होते हैं-अतिक्रम-गृहीत व्रत को तोड़ने का मन में संकल्प करना, व्यतिक्रम-व्रत को भंग करने के लिए साधन जुटाना, अतिचार, व्रत तोड़ने की तैयारी, पर अभी तक तोड़ा नहीं, अनाचार-स्वीकृत मर्यादा का सर्वथा लोप कर देना । द्वितीय अणुव्रत के पाँच अतिचार है, जो जानने योग्य हैं । (परन्तु) आचरण योग्य नहीं हैं। सहसाभ्याख्यान :
सहसा (विना बिचारे) अभ्याख्यान किसी के सम्बन्ध में कुछ का कुछ कह देना, मिथ्या दोष लगाना, झूठा कलंक देना।
१. बिचार किये बिना ही आवेश में आ कर झट किसी पर मिथ्या
आरोप लगा देना सहसाभ्याख्यान है। जैसे-'तू चोर है, जारसुत्र है !, - पूज्य धासी लालजीम० कृत उपासक-दशांग टीका पृ० २८६ सहसा (बिना विचारे) बोला हो।
-कांन्फरेन्स द्वारा प्रकाशित प्रतिक्रमण-सूत्र पृ० २४ ।।
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