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________________ व्याख्या ६७ व्याख्या : सत्य : . सत्य परम धर्म । सत्य से बढ़कर अन्य दूसरा कोई धर्म नहीं है । भगवान् महावीर ने सत्य को 'भगवान्' कहा है । 'त सच्चं खु भगवं ।' अर्थात् सत्य ही भगवान् है । सत्य में स्थिर रहने वाला व्यक्ति मृत्यु को भी जीत लेता है । सत्य-चिन्तन सत्य-भाषण और सत्य आचरण से जीवन पवित्र बन जाता है । There is nothing so delightful as the hearing or the speaking of th: truth. इस विगट विश्व में सत्यवचन सुनने और सत्यवचन बोलने से अधिक मधुर आनन्द कुछ भी नहीं हैं सत्य, लोक का सार है। द्वितीय अणवत: स्थूल मषावाद (असत्य) से विरत हो जाना, अलग हो जाना द्वितीय अणुव्रत है । सत्य धर्म है, और असत्य पाप है । असत्य के पांच भेद हैं । अयवा जिन कारणों से मनुष्य असत्य बोलता है वे असत्य के कारण पाँच हैं, जो ये हैंकन्यालीक: ___ कन्या के लिए अलीक (असत्य) बोलना, कन्यालीक है । यहाँ कन्या के विषय में जो झूठ बोलने का निषेध है, वह समस्त मनुष्यजाति के विषय में झूठ बोलने का निषेध समझना चाहिए। गुण-सम्पन्न कन्या या वर को गुण-हीन कहना, और गुण-होन को गुण-सम्पन्न कहना, कन्या-सम्बन्धी असत्य है। गवालीक: गाय के विषय में अलीक (असत्य) कहना । गाय से यहाँ पर अन्य पशुओं का भी ग्रहण हो जाता है। अच्छी गाय को बुरी और बुरी को अच्छी कहना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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