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श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र 'सदारमंत-भेए, मोसोवएसे' कूडलेह-करणे । जो मे देवसिओ अइयारो कओ' तस्स मिच्छा
मि दक्कडं। अर्थ: द्वितीय अणुव्रत है- स्थूल मृषावाद (झूठ) से विरत
होना-अलग होना। और वह मृषावाद पांच प्रकार का कहा गया है। जैसे - कन्या-सम्बन्धी झूठ, गाय-सम्बन्धी झूठ, भूमिसम्बन्धी झूठ, धरोहर-सम्बन्धी झूठ, झूठी साक्षी(गवाही सम्बन्धी झूठ) । इत्यादि स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान (त्याग) जीवन-पर्यन्त, दो करण तीन योग से-न बोलू, न बुलाऊँ, मन से, वचन से काय से । इस द्वितीय स्थूल मृषावादविरमणव्रत के श्रमणोपासक को (श्रमणोपासिका को) पाँच अतिचार जानने के योग्य हैं, (किन्तु) आचरण के योग्य नहीं हैं। जैसे-सहसाभ्याख्यान-बिना सोचे विचारे किसी पर कलंक लगाना, रहस्याभ्याख्यान = रहस्य की (गुप्त) बातों को प्रकट करना, स्वदारा-मंत्र-भेद= स्वपत्नी के मन्त्र (गुप्त मर्म) को प्रकट करना, मृषो. पदेश मिथ्या उपदेश करना, कूट-लेख=करण = झठा लेख लिखना। जो मैं ने दिवस-सम्बन्धी अतिचार किए हों, तो
उसका पाप मेरे लिए निष्फल हो । श्राविका (सभत्तार-मंतभेए) पाठ याद करें।
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