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________________ व्याख्या भक्त-पान- विच्छेद : भक्त (भोजन) और पान (पानी); इनके विच्छेद (अन्तराय) को भक्त-पान-विच्छेद करते हैं । इसके भी दो भेद हैं - सापेक्ष और निरपेक्ष श्रावक का यह कर्तव्य है, कि अपने आश्रित मनुष्य एवं पशु आदि के भोजन-पान का यथावसर पूरा ध्यान रखे । निरपेक्ष हो कर किसी के भक्त-पान में अन्तराय नहीं डालनी चाहिए। हाँ, रोगादि कारण से भक्त-पान न देना हो तो वह सापेक्ष है, सप्रयोजन है । अत: उसकी गणना अतिचार में नहीं की जाती । : २६ : मूल : ૬૭ द्वितीय सत्य-अणुव्रत बीयं अणुव्वयं धूलाओ मुसावायाओ वेरमणं । से मुसावाए पंचविहे पन्नते । 1 तंजा - कन्नालीए, गवालीए, भोमालीए, णासावद्वारे (थापणमोसे), कूड - सक्खिज्जे । इच्चेव माइयस्स धूल- मुसावायस्स पच्चक्खाणं । जावज्जीवाए, दुविहं तिविहेणं, न करेमि न न कारवेमि' मणसा' वयसा' कायसा । एयस्स बीयस्स धूलग मुसावायवेरमणस्स समगोवास एवं पंच अइयारा जाणियव्वा' न समायरियव्वा । तं जहा - सहसान्भवखाणे, रहस्साब्भक्खाणे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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