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व्याख्या
भक्त-पान- विच्छेद :
भक्त (भोजन) और पान (पानी); इनके विच्छेद (अन्तराय) को भक्त-पान-विच्छेद करते हैं । इसके भी दो भेद हैं - सापेक्ष और निरपेक्ष श्रावक का यह कर्तव्य है, कि अपने आश्रित मनुष्य एवं पशु आदि के भोजन-पान का यथावसर पूरा ध्यान रखे । निरपेक्ष हो कर किसी के भक्त-पान में अन्तराय नहीं डालनी चाहिए। हाँ, रोगादि कारण से भक्त-पान न देना हो तो वह सापेक्ष है, सप्रयोजन है । अत: उसकी गणना अतिचार में नहीं की जाती ।
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मूल :
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द्वितीय सत्य-अणुव्रत बीयं अणुव्वयं धूलाओ मुसावायाओ वेरमणं । से मुसावाए पंचविहे पन्नते ।
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तंजा - कन्नालीए, गवालीए, भोमालीए, णासावद्वारे (थापणमोसे), कूड - सक्खिज्जे । इच्चेव माइयस्स धूल- मुसावायस्स पच्चक्खाणं । जावज्जीवाए, दुविहं तिविहेणं, न करेमि न न कारवेमि' मणसा' वयसा' कायसा । एयस्स बीयस्स धूलग मुसावायवेरमणस्स समगोवास एवं पंच अइयारा जाणियव्वा' न समायरियव्वा ।
तं जहा - सहसान्भवखाणे, रहस्साब्भक्खाणे,
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