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________________ ६४ श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र शास्त्र में श्रावक-धर्म और सर्व-विरति को श्रमण-धर्म भी कहा गया है। श्रावक के पांच अणुव्रत तीन गुणव्रत और चार शिक्षाबत होते हैं। श्रावक द्वादशवती होता है, और श्रमण पंच महाव्रती होता हैं। चरित्ररूप धर्म के ये दो भेद पात्र अर्थात्. अधिकारी की न्यूनाधिक योग्यता के आधार पर किए गए हैं, वैसे धर्म तो अपने आप में एक अखण्ड तत्व होता है। अहिंसा: प्रत्येक प्राणी को अपना जीवन प्रिय है। सब अपने जीवन की सुरक्षा चाहते हैं। परन्तु यह सुरक्षा बिना अहिसा के केस हो सकेगी? अत: अहिंसा आध्यात्मिक जीवन की नींव है। व्रतों में यह सब से पहला व्रत है। भगवान् महावीर ने अहिंसा को भगवती कहा है । सब धर्मो में यह श्रेष्ठ धर्म है। अहिंसा का मार्ग-खांडे की धार पर चलने जैसा है। अहिंसा से शान्ति प्राप्त होती है। क्या हिंसा से भी कभी शान्ति मिल सकती है ? Nothing good ever comes of violence. हिंसा में से कभी अच्छा परिणाम नहीं आया है और जिसमें से अच्छा परिणाम न आए, वह धर्म कैसे हो सकता? क्रू र व्यक्ति अहिंसा का पालन नहीं कर सकता । अहिंसा के पालन के सदस्य हृदय ही विशेष रूप से अपेक्षित है। Paradise is open to all kind hearts. स्वर्ग के द्वार दयाशील व्यक्तियों के लिए सदा खुले रहत है । हिसा में अपार शक्ति है । प्रथम अणुव्रत __स्थूल प्राणातिपात (हिंसा) से विरत हो जाना पहला अणुव्रत है । यहाँ पर स्थूल शब्द से द्वीन्द्रिय जीव से पञ्चेन्द्रिय जीव तक ग्रहण किए गए हैं। किसी जीव के प्राणों का अतिपात (विनाश) प्राणातिपात कहा जाता है । प्राणतिपात दो प्रकार का होता है-संकल्पज और आरम्भज सवरुप अर्थात् जान-बूझ कर द्वीन्द्रिय आदि त्रसजीवों का मांस, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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