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________________ व्याख्या जैसे -बन्ध = : बाँधना, वध = मारना, छविच्छेद = चमड़ी का छेदन, अतिभार X अधिक भार लादना, भक्त पान विच्छेद = खाने-पीने में अन्तराय डालना । जो मैंने दिवस सम्बन्धी अतिचार किये हों, तो उसका पाप मेरे लिए निष्फल हो । ६३ कमाख्या : विचार : वस्तु तत्व को समझने के लिए विचार की, ज्ञान की आवश्यकता है । संसार के सब क्लेश एक मात्र आत्मा के अज्ञान पर ही आधारित हैं । अज्ञान को दूर करने का साधन, आत्मज्ञान के सिवा, अन्य क्या हो सकता है ? आत्मा का स्वरूप क्या है ? कर्म क्या है ? बन्धन क्या है ? कर्म आत्मा के क्यों लगते हैं ? आदि प्रश्नों का सुन्दर समाधान सम्यग्ज्ञाम है । जव तक Right Knowledge न हों, तब तक आत्मा भव-बन्धनों से विमुक्त नहीं हो सकता । आचार : विचार का फल, ज्ञान का फल है - आचार अर्थात् विरति । ज्ञान होने पर भी यदि विषयों मे विरक्ति नहीं आए, तो समझना चाहिए वह ज्ञान ही कैसा ? सूर्योदय हो जाने पर भी अन्धकार बना रहे, यह कैसे ? विचार जब क्रिया का रूप लेता है, तब उसको आचार कहा जाता है । साधक - जीवन में जब तक Right Conduct न हो, तव तक ज्ञान पाना भी सार्थक नहीं होता । अतः शास्त्रकार कहते हैं - 'ज्ञानस्य फलं विरतिः ।' आचार - विरति के भेद विरति के दो भेद हैं - देश - विरति और सर्व-विरति । देश - विरति को अणुव्रत और सर्व-विरति को महाव्रत कहते हैं । देश विरति को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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