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________________ श्रावक प्रतिक्रमण-सूत्र व्याख्या: मंगल की अभिलाषा किसको नहीं है । संसार का प्रत्येक प्राणी मंगल चाहता है । संसार में सर्वश्रेष्ठ मंगल चार ही हैं, ये कभी भी अमंगल नहीं होते । ये सदा मंगलरूप हैं । संसार में उत्तम क्या है ? धन, जन, तन, ? कभी नहीं। ये सब नश्वर तत्त्व हैं ? आज हैं, कल नहीं । अतः ये सब श्रेष्ठ (उत्तम) नहीं हो सकते । उत्तम चार ही हैं, ये कभी अनुत्तम नहीं होते। . संसार में जितने भी पदार्थ हैं, वे मनुष्य को शरण नहीं दे सकते । धम, जन, राज्य एवं वैभव-ये सब मिथ्या हैं, क्षणिक हैं । फिर शरण क्या देंगे ? सच्चे शरण चार हैं, जो कभी अशरण रूप नहीं होते । :२४: सम्यक्त्व-सूत्र मूल : अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवं सु-साहुणो गुरुणो । जिणपएणत्तं तत्तं, इय सम्मत्तं मए गहियं ।। एयस्स सम्मत्तस्स समणोवासएणं पंच अइयारा पेयाला जाणियब्वा, न समायरियव्वा । तं जहा--संका, कंखा, वितिगिच्छा, पर-पासंडपसंसा, पर-पासंड-संथवो । जो मे देवसिओ अइयारो कओ, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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