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मंगल-सूत्र मूलः चत्तारि मंगलं
अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलि-पएणत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमाअरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि-पएणत्तो धम्मो लोगुत्तमो । चत्तारि सरणं पब्वज्जामिअरिहंते सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि साहू सरणं पब्बज्जामि, केवलि-पएणचं
धम्म सरणं पव्वज्जामि । अर्थ : संसार में चार मंगल हैं
अरिहंत, सिद्ध, साधु और जिन-भाषित धर्म । संसार में चार उत्तम हैंअरिहंत, सिद्ध, साधु और जिन-भाषित धर्म । संसार में चार शरणरूप हैंअरिहन्त,सिद्ध, साधु और जिन-भाषित धर्म ।
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