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अष्टादश पापस्थानक अष्टादश पापस्थानक के विषय में, जो कोई अतिचार लगा हो, तो उसकी मैं आलोचना करता हूँ- .
प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान- माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, पर-परिवाद, रति-अरति, मायामृषा, मिथ्यादर्शन शल्य
इन अष्टादश पापस्थानों में से जो कोई दिवस-सम्बन्धी पापस्थान का सेवन किया हो, कराया हो, अनुमोदन किया हो, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
:२०: निन्यानवे अतिचार चौदह ज्ञान के, पांच सम्यक्त्व के आठ, बारह व्रतों के, पन्द्रह कर्मादान के, पांच संलेखना के, इस प्रकार निन्यानवे अतिचारों के विषय में, जो कोई दिवस-सम्बन्धी,
अतिक्रम, ब्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार,
सेवन किया हो कराया हो, अनुमोदन किया हो, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
:२१:
समग्र अतिचार-चितन मूल : तस्स सम्बस्स, देवसियस्स अइयारस्स,
दुब्भासियस्स, दुविचिन्तियस्स, दुच्चिट्टियस्स आलोयंतो पडिक्कमामि,
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