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: १७: द्वादश अतिथि-संविभागबत के अतिचार
द्वादश अतिथि संविभागबत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो, तो उसको मैं आलोचना करता हूँ
१. सूझती वस्तु सचित्त वस्तु पर रखी हो, २. अचित्त वस्तु को सचित्त वस्तु से ढंक दिया हो, ३. काल का अतिक्रमण किया हो, ४. अपनी वस्तु को दूसरे की बताया हो, ५. मत्सर-भाव से दान दिया हो,
जो मैंने दिवस-सम्बन्धी अतिचार किये हों, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
संलेखना के अतिचार संलेखना के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो, तो उसकी मैं आलोचना करता हूँ -
१. इस लोक के सुख की वाञ्छा की हो, २. पर-लोक के सुख की वाञ्छा की हो, ३. असंयत जीवन को वाञ्छा की हो, ४. मरण की वाञ्छा की हो, ५. कामभोग की वाञ्छा की हो,
जो मैंने दिवस-सम्बन्धी अतिचार किये हों, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
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