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व्याख्या
: १५ :
दशम देशावकाशिक-व्रत के अतिचार
दशम देशावकाशिक-व्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो, तो उसकी में आलोचना करता हूँ -
१. मर्यादित सीमा के बाहर की वस्तु मंगाई हो, २. मर्यादित सीमा के बाहर की वस्तु भेजी हो, ३. शब्द करके चेताया हो,
४. रूप दिखा कर अपना भाव प्रकट किया हो, ५. कंकर आदि फेंक कर दूसरे को बुलाया हो, जो मैंने दिवस-सम्बन्धी अतिचार किये हों, तो तस्य मिच्छामि दुक्कडं ।
एकादश पौषव्रत के अतिचार
: १६ :
एकादश - पौषधव्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो, तो उसकी मैं आलोचना करता हूँ
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१. पौषधवत में शय्यासंथारा की प्रतिलेखना नको हो, २. उसकी प्रमार्जना न की हो
३. उच्चार- पासवणभूमि की प्रतिलेखना न की हो, ४. उसकी परिमार्जना न की हो,
५. पौषधव्रत का सम्यक् पालन न किया हो,
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