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४.
धन-धान्य के परिमाण का आतक्रमण कियाहा, द्विपद-चतुष्पद के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, कुप्य' के परिमाण का अतिक्रमण किया हो,
५.
जो मैंने दिवस सम्बन्धी अतिचार किये हों, तस्स मिच्छा
मि दुक्कडं ।
: १०
षष्ठ दिशा-परिमाण व्रत के अतिचार
•
षष्ठ- दिशा- परिमाण विरमणव्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो, तो उसकी मैं आलोचना करता हूँ :
१. ऊर्ध्वदिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, २. अधोदिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो, तिर्यक दिशा के परिमाण का अतिक्रमण किया हो ४. क्षेत्र - वृद्धि की हो,
"
५. क्षेत्र - परिमाण के विस्तृत हो जाने से, क्षेत्रपरिमाण का अतिक्रमण किया हो,
जो मैंने दिवस सम्बन्धी अतिचार किये हों, तस्स मिच्छा मिदुक्कडं 1
: ११ :
सप्तम उपभोग - परिभोगपरिमाणव्रत के अतिचार सनम - उपभोग- परिभोग परिमाणव्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो, तो उसकी मैं आलोचना करता हूँ
:
१. द्विपद = दास-दासी, चतुष्पद = गाय आदि पशु,
२. बरतन आदि घर की सामग्री,
३. पूर्व, पश्चिम आदि तिरछी दिशा ।
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