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च्याख्या
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स्वाध्याय के काल में स्वाध्याय न करना, मृतक कलेवर आदि से युक्त अशुचि स्थान में स्वाध्याय करना और स्वाध्याय के योग्य शुचिस्थान में प्रमादवश स्वाध्याय न करना आदि ज्ञान के चौदह अतिचारों का वर्णन इस में किया गया है।
दर्शनातिचार दर्शन सम्यक्त्व-रत्न पदार्थ के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो, तो उसकी मैं आलोचना करता हूँ
१. जिन-वचन में शङ्का की हो, २. पर-दर्शन की इच्छा की हा, ३. कर्म-फल के विषय में सन्देह किया हो, ४. पर पाखण्डी की प्रशंसा की हो, ५. पर-पाखण्डी का संस्तव (परिचय) किया हो,
जो मैंने दिवस सम्बन्धी अतिचार किये हों, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
:५: प्रथम अहिंसा-अणुव्रत के अतिचार प्रथम-स्थूल प्राणातिपात-विरमणव्रत के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो उसकी मैं आलोचना करता हूँ--
१. क्रोधादि-वश त्रस जीवों को गाढ़े बन्धन से बाँधा हो, २. गाढ़ा घाव किया हो,
१. जिनभाषित तत्त्व में,
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