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व्याख्या
मूल :
ज्ञानातिचार आगमे तिविहे पण्णचे । तंजहा-सुवागमे, अत्थागमे, तदुमयागमे । एयस्स सिरिनाणस्स जो मे अइयारो कओ, तं आलोएमि । जं वाइद्धं, वच्चामेलियं, हीणक्खरं, अच्चक्खरं पय-हीणं, विणय-हीणं, जोग-हीणं, घोस-हीण, सुट्ट दिन, दुठ्ठ पडिच्छियं । अकाले कओ सज्झाओ, काले न को सभाओ, असज्माए सज्झाइयं, सज्झाए न सज्झाइयं । जो मे देवसियो अइयारो कओ, तस्य मिच्छा मि दुक्कडं।
अर्थ:
आगम तीन प्रकार का कहा है । जैसे कि, शब्दरूप आगम, अर्थरूप आगम, उभयरूप आगम । इस ज्ञान का जो मैंने अतिचार किया हो, तो उस की मैं आलोचना करता हूँ। सूत्र को उलट-पलट कर पढ़ा हो, अन्य सूत्रों का पाठ अन्य सूत्रों से मिलाया हो, हीन-अक्षरयुक्त पाठ किया हो, अधिक,अक्षरयुक्त पाठ किया हो, पदहीन पढ़ा हो, विनयरहित पाठ किया हो, योग हीन पढ़ा हो, उदात्त भादि स्वररहित पढ़ा हो, पात्र-कुपात्र
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