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व्याख्या
अर्थ :
सुए, सामाइए; तिरह गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं, तिएहं गुणव्वयाणं, चउराहं सिक्खावयाणं, बारसविहस्स सावग-धम्मस्स जं खंडियं, जं बिराहियं,
तस्य मिच्छा मि दुक्कडं। इच्छा करता हूँ, प्रतिक्रमण करने की, जो मैंने दिवस-सम्बन्धी अतिचार किया हो, काय का, वचन का, मन का, . उत्सूत्र (सूत्र के विरुद्ध) मार्ग के विरुद्ध (बोतराग मार्ग के विपरीत) कल्प (आचार) विरुद्ध, अकरणीय (जो करने योग्य न हो) दुनिरूप, दुश्चिन्तनरूप अनाचाररूप, अनिच्छितरुप, जो श्रावक के योग्य न हो, ज्ञान में तथा दर्शन में, संयमासंयम में, श्र त (ज्ञान) मैं, सामायिक-व्रत में, तीन गुप्तियों की, चार कषायों की पांच अणुव्रतों की, तीन गुण-व्रतों की, चार शिक्षाव्रतों की, (इस प्रकार) द्वादश प्रकार के श्रावकधर्म की,
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