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श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
साधक गुरू के समक्ष उपस्थित हो कर कहता है--"भते ! आप आशा प्रदान कीजिए, जिससे मैं दिवस-सम्वन्धी प्रतिक्रमण करके दिवस-सम्बन्धी ज्ञान, दर्शन, चारित्राचारित्र (देश चारित्र) और तप के अतिचारों का चिन्तन करने के लिए कायोत्सर्ग करू।" ।
प्रस्तुत पाठ में यह कहा है, कि साधक को अपनी साधना में जागृत रहना चाहिए । ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की साधना में भूल-चूक से जो अतिचार अर्थात् दोष लग जाते हैं, उनका एकाग्र-भाव से चिन्तन करना चाहिए, विचार करना चाहिए । संध्याकाल में दिन के अतिचारों का और प्रातःकाल में रात के अतिचारों का चिन्तन करना चाहिए।
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संक्षिप्त प्रतिक्रमण सूत्र मूल : इच्छामि पडिक्कमिउं,
जो मे देवसिओ अइयारो कओ, काइओ, वाइओ, माणसिओ, उस्सुत्तो, उम्मग्गो, अकप्पो, अकरणिज्जो, दुज्झाओ दुविचिंतिओ, अणायारो, अणिच्छियव्वो, असावग-पाउग्गो, नाणे तह दसणे, चरित्ताचरित्ते,
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