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________________ २४ सामायिक-सूत्र अरिहन्त भगवान् धर्म के दाता हैं, धर्म के उपदेशक हैं, धर्म के नेता हैं, धर्म के सारथी हैं । ___इस प्रकार प्रस्तुत पाठ में अनेक उपमाओं द्वारा भगवान् की स्तुति की गई है। :११: ___ समाप्ति-सूत्र मूल : एयरस नवमस्स सामाइय-वयस्स, पंच अइयारा, जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा :मणदुप्पणिहोणे, वयदुप्पणिहाणे, कायदुप्पणिहाणे, सामाइयस्स सइ अकरणया, सामाइयस्स अणवाहियस्स करणया, तस्स मिच्छा मि दुक्कई । सामइयं सम्मं काएण, न फासियं,न पालियं, न तीरियं, न किट्टियं, न सोहियं, न आराहियं, आणाए अणुपालियं न भवइ, तस्स मिच्छा मि दुक्कई । १. प्रणिपात-सूत्र आदि सामायिक के पाठों की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचन उपाध्याय श्रद्धय अमरचन्द्रजी म० कृत सामायिक-सूत्र भाष्य में देखिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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