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व्याख्या
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धारण करने वाले हैं, मोहनीयप्रमुख घातिकर्म से तथा प्रमाद से रहित हैं, स्वयं राग-द्वेष के जीतने वाले हैं, दूसरों को जिताने वाले हैं, स्वयं संसार-सागर से तर गये हैं, दूसरों को तारने वाले हैं, स्वयं बोध पाए हुए हैं, दूसरों को बोध देने वाले हैं, स्वयं कर्म से मुक्त हुए हैं, दूसरों को मुक्त करने वाले हैं, तीन काल और तीन लोक के सूक्ष्म तथा स्थल सभी पदार्थो के ज्ञाता होने से सर्वज्ञ हैं। और इसी प्रकार सबके द्रष्टा होने से सर्वदर्शी हैं, शिव=कल्याणरूप, अचल=स्थिर, अरुज-रोग से रहित, अनन्त-अन्तरहित, अक्षय=क्षयरहित, अव्याबाध-बाधापीड़ा से रहित, पुनरागमन से भी रहित 'सिद्धि-गति' नामक स्थान विशेष अर्थात् अवस्थाविशेष को प्राप्त कर चुके हैं, [अरिहन्त के लिए 'ठाणं सपाबिउकामाणं' आता है, उसका अर्थ है-सिद्धिगति नामक स्थान को भविष्य में पाने वाले हैं] नमस्कार हो, भय के जीतने वाले, रागद्वष के जोतने
वाले जिन भगवानों को ! व्याख्या:
यह प्रणिपात-सूत्र है। इसमें अरिहन्त भगवान् की स्तुति की गई है। इस पाठ को शक्रस्तव भी कहते हैं । इन्द्र ने भगवान् की इसी पाठ से स्तुति की थी। अतः स्तुति-साहित्य में यह महत्त्वपूर्ण पाठ है।
'नमोऽत्थुणं' के पाठ में तीर्थकर भगवान् के विश्व-हितंकर निर्मल गुणों का अत्यन्त सुन्दर परिचय दिया गया है । ____ अरिहन्त भगवान् लोक में उत्तम हैं। लोक के नाय हैं लोक में दीपक हैं, लोक में ज्ञान का प्रकाश करने वाले हैं।
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