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१६.
सामायिक सूत्र
कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत, एवं रागद्वेष के विजेता नमिनाथ को वन्दना करता हूँ । इसी प्रकार भगवान् अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और वर्द्धमान स्वामी को भी वन्दना करता हूँ ||४|| जिनकी मैंने इस भाँति स्तुति की है, जिन्होंने कर्मरूपी रज तथा मल को दूर कर दिया है, जो जरा-मरण से सर्वथा रहित हो गए हैं, वे राग-द्वेष के जीतने वाले जिनवर चौबीस तीर्थङ्कर मुझ पर प्रसन्न हों ॥२५॥ जिनकी इन्द्रादि देवों ने स्तुति की है, वन्दना की है, उपासना की है, और जो अखिल संसार में सब से उत्तम हैं, वे सिद्ध भगवान् मुझे आरोग्य, सम्यग् बोधि, तथा उत्तम समाधि प्रदान करें ||६॥
जो अनेक चन्द्रमाओं से भी अधिक निर्मल हैं, जो अनेक सूर्यों से अधिक प्रकाश करने वाले हैं, जो महासागर के समान गम्भीर हैं, वे सिद्ध भगवान् मुझे सिद्धि अर्थात् मुक्ति प्रदान करें ||७||
व्याख्या :
यह चतुर्विंशति- स्तव सूत्र है । भक्ति-साहित्य में यह एक अनूठी रचना है । इस के प्रत्येक शब्द में भक्तिभाव का अखण्ड स्रोत्र प्रवाहित हो रहा है ।
दिव्यपुरुषों का स्मरण मन को पवित्र बनाता है । दिव्य आत्मा के ध्यान से मन भी दिव्य बन जाता है ।
प्रस्तुत पाठ में भगवान् ऋषभदेव से ले कर भगवान् महावीर तक चौबीस तीर्थङ्करों की स्तुति की गई है, वे हमारे इष्टदेव हैं ; अहिंसा और सत्य का मार्ग बताने वाले है, वे हमारे परम देव हैं । उनका स्मरण
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