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ख्याख्या
चउवीसं पि जिण-वरा,
तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥ किचिय-बंदिय-महिया,
___ जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरूग्ग-वोहिलाभ, . समाहिवरमुत्तमं किंतु ।।६।। चंदेसु निम्मलयरा,
आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागर-वर-गंभीरा,
सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥ अर्थ : लोक-संसार में धर्म का उद्योत प्रकाश करने वाले
धर्म-तीर्थ की स्थापना करने वाले, [रागद्वेष के] जीतने वाले, [ कर्मरुपी ] शत्रुओं के नाश करने वाले, केवल ज्ञानी चौबीस तीर्थङ्करों का में कीर्तन स्तवन करूंगा ॥१॥ ऋषभदेव तथा अजितनाथ को वन्दना करता हूँ । संभवनाथ, अभिनन्दन, सुमितनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, और रागद्वोष के जीतने वाले चन्द्रप्रभ भगवान् को भी वन्दना करता हूँ ॥२॥ सुविधिनाथ-पुष्पदन्त, शोतल, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, रागद्वेष के विजेता अनन्तनाथ, धर्मनाथ, तर्थव शान्तिनाथ भगवान को वन्दना करता हूँ॥३।।
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