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व्याख्या
[आत्मा की विशेष निर्मलता के लिए, [आत्मा को] शल्य यानि माया से रहित करने के लिए पाप-कर्मों का मूलोच्छेद =सर्वनाश करने के लिए, मैं कायोत्सर्ग करता हूँ-शरीर की क्रिया का त्याग
करता हूँ। व्याख्या :
यह उत्तरीकरण-सूत्र है । इस में कायोत्सर्ग का संकल्प किया जाता है। जो वस्तु एक बार मलिन हो जाती है, वह एक बार के प्रयत्न से ही शुद्ध नहीं हो जाती। उसकी विशुद्धि के लिए बार-बार प्रयत्न करना होता है। ___ यह कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा का सूत्र है । कायोत्सर्ग में दो शब्द हैकाय और उत्सर्ग । काय अर्थात् शरीर का, उत्सर्ग अर्थात्-त्याग । अभिप्राय यह हैं, कि कायोत्सर्ग करते समय साधक अपने शरीर की ममता छोड़ कर आत्म-भाव में प्रवेश करता है। कायोत्सर्ग में शरीर की चञ्चलता के साथ-साथ मन और वचन की चञ्चलता का भी त्याग होना चाहिए।
स्वीकृति व्रत की शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त आवश्यक है। वह भावशुद्धि से होता है । वह भाव-शुद्धि शल्य के त्याग बिना नहीं हो सकती। और शल्य-त्याग के लिए ही कायोत्सर्ग किया जाता है।
आगार-सूत्र अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं जंभाइएणं, उडडुए,
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