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सामायिक सूत्र
चित्र है। आवश्यक कार्य के लिए कहीं इधर-उधर आना-जाना आदि कार्य हुआ हो, तब यतना का ध्यान रखते हुए भी यदि कहीं प्रमाद-वश किसी जीव को पीडा पहुँची हो, तो उसके लिये इस पाठ में पश्चात्ताप किया गया है। जैनधर्म का साधक जरा-जरा-सी भूलों के लिये भी पश्चत्ताप करता है और हृदय को निष्पाप बनाने का प्रयत्न निरन्तर करता रहता है।
प्रस्तुत पाठ के द्वारा आत्म-विशुद्धि का मार्ग बताया गया है। जिस प्रकार कपड़े में लगा हुआ मैल खार और साबुन से साफ किया जाता है, उसी प्रकार गमनागमनादि क्रिया करते समय अशुभ योग आदि के कारण अपने विशुद्ध समय-धर्म में किसी भी प्रकार का कुछ भी पाप-मल-लगा हो, तो वह सब पाप प्रस्तुत पाठ में चिन्तन से साफ किया जाता है । आलोचना के द्वारा अपने संयम-धर्म को पुनः स्वच्छ, शुद्ध और साफ बनाया जाता है ।
उत्तरीकरण सूत्र मूलः तस्स उतरीकरणेणं,
पायच्छित्त-करणेणं, विसोहि-करणेणं, विसल्ली-करणे पावाणं कम्माणं निग्घायणाट्टाए,
ठामि काउस्सग्गं, अर्थ : उस [व्रत या आत्मा की] विशेष शुद्धि करने के लिए,
[गुरुदेव के समीप] प्रायश्चित्त करने के लिए,
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