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________________ सामायिक-सूत्र चउरिंदिया, पंचिंदिया ! अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठोणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । अर्थ : हे भगवन् ! इच्छा-पूर्वक आज्ञा दोजिये, ताकि मैं एक पथिको अर्थात् गमनागमन की क्रिया का प्रतिक्रमण करूं [गुरु की ओर से आज्ञा मिल जाने पर, अथवा गुरू न हों, तो अपने संकल्प से ही आज्ञा पा कर श्रावक को कहना चाहिए] आज्ञा स्वीकार है। आते जाते मार्ग में अथवा श्रावक का धर्माचार पालने में, जो कुछ भी [जीवों की विराधना हो गई हो, तो उस पाप से प्रतिक्रमण चाहता हूँ = निवृत्त होना चाहता हूँ। एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमनागमन करते हुए किसी जीव को पैरों से नीचे दबाने से, इसी प्रकार सचित्त बीज, हरितकाय = वनस्पति, अवश्याय = आकाश से पड़ने वालो ओस , उत्तिंग-चींटियों के बिल, पनग= पाँच वर्ण की शैवाल- काई, दक= सचित्त जल, सचित्त मिट्टी और मकड़ी के जालों को दबाने से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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