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________________ १०६ श्रावक का प्रतिक्रमण-सूत्र क्षेत्र-बुद्धि : ____ जहाँ सामायिक की जाती है, उस स्थान को क्षेत्र कहते है । शान्त वातावरण और एकान्तरूप में क्षेत्र की शुद्धि भी आवश्यक है। काल-शुद्धि : ___ सामायिक प्रातःकाल आदि ऐसे शान्ति के समय में करनी चाहिए, ताकि वह अनुद्वग, शान्त और निर्विघ्नता के साथ हो सके । इसका भी विचार रखना चाहिए कि सामायिक के काल में ही सामायिक की जाए भाव-शुद्धि : सामायिक करते समय भाव-शुद्धि भी आवश्यक है । मन की पवित्रता एवं शुभ संकल्प रखना भाव-शुद्धि है । अतिचार सामायिकव्रत के पाँच अतिचार हैं, जो श्रमणोपासक को जानने योग्य तो हैं, (किन्तु) आचरण के योग्य नहीं । वे इस प्रकार हैंमनो-दुष्प्रणिधान : मन में बुरे संकल्प विकल्प करना । मन को सामायिक में न लगा कर सांसारिक कार्य में लगाना । वचन-दुष्प्रणिधान : ___ सामायिक में कटु,कठोर, निष्ठुर, असभ्य तथा सावध वचन बोलना, किसी की निन्दा करना, आदि । कास-दुष्प्रणिधान : सामायिक में चंचलता रखना। शरीर से कुचेष्टा करना, बिना कारण शरीर को फैलाना और समेटना अन्य किसी प्रकार की साबद्य चेष्टा करना, आदि : सामायिक-भतिभस : 'मेंने सामायिककी है', इसबात को ही भूल जाना, सामायिक कब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002714
Book TitleShravaka Pratikramana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Ritual, & Paryushan
File Size6 MB
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