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ब्याख्या
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जो मैंने दिवस-सम्बन्धी अतिचार किए हों तो उसका
पाप मेरे लिए निष्फल हो । व्याख्या : सामायिक :
जैन-धर्म की साधना में सामायिक का बड़ा महत्व है । सामायिक का अर्थ है-समभाव की साधना । संसार के प्रपंचों से अलग हो कर, राग-द्वेष के द्वन्द्वों से हट कर, जीवन को निरवद्य, निष्पाप एवं पवित्र बनाना ही समत्व-भाव है, समताभाव है । परन्तु गृहस्थ जीवन में समभाव की साधना कितनी और कैसी हो सकती है ? यह एक प्रश्न है । गृहस्थ -एक गृहस्थ है, वह साधु नहीं है, जो जीवनभर के लिए सब पाप-व्यापारों का पूर्ण रूप से परित्याग करके, पूर्ण समभाव का पवित्र जीवन बिता सके । अतः उसे प्रतिदिन कम से कम अमुक मर्यादा के साथ एक मुहूत (अड़तालीस मिनट) के लिए तो सामायिक व्रत धारण करना ही चाहिए । गृहस्थ की सामायिक -साधु की पूर्ण सामायिक के अभ्यास की भूमिका है। वह दो घड़ी का आध्यात्मिक स्नान है। जो जीवन को निष्पाप, निष्कलंक एवं पवित्र बनाता है । सामायिक-व्रत :
नवम सामायिक व्रत है-सावद्ययोग से विरत होना । सामायिक व्रत एक अध्यात्मसाधना है, परन्तु उसे करने से पूर्व शुद्धि की आवश्यकता है । शुद्धि चार प्रकार की होती है, जो इस प्रकार से हैद्रव्य-शुद्धि :
सामायिक के लिए जो उपकरण हैं; जैसे--वस्त्र, पुस्तक, रजोहरणी, मुखवस्त्रिका एवं आनस आदि --उन सभि का द्धशु एवं उपयोगी ना होआवश्यक है।
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