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________________ (५६) अन्वयार्थ- (असण्णीए) असंज्ञी जीवों के (कम्मय ओरालियदुग असच्चमोसूणजोग) कार्मण काययोग, औदारिक काययोग, औदारिक मिश्र काययोग, असत्यमृषावचनयोग अर्थात अनुभयवचनयोग इन चार योगों को छोडकर शेष ग्यारह योगों से रहित तथा (मणहीना) मन को छोड़कर ग्यारह प्रकार की अविरति, पच्चीस कषाय, पाँच मिथ्यात्व ये (पणदाला) पेतालीस आस्रव होते हैं। आहार मार्गणा की विवक्षा में (आहारे) आहारक जीवों के (कम्मइया) कार्मण काययोग को छोड़कर शेष (सयल) सभी आस्रव अर्थात् छप्पन आस्रव होते हैं। तेदालाणाहारे कम्मेयरजोयहीणया हुंति। तित्थप्पहुणा गणिया इति मग्गणपच्चया भणिया।। ६८।। त्रिचत्वारिंशदनाहारके कर्मेतरजोगहीनका भवन्ति। तीर्थप्रभुणा गणिता इति मार्गणाप्रत्यया भणिताः॥ तेदालाणाहारे- अनाहारके जीवे कम्मेयरजोयहीणया- कार्मणकाययोगादितरे ये चतुर्दशयोगास्तैींना अन्ये, तेदाला- त्रिचत्वारिंशत्प्रत्यया भवन्ति। ते के ?-मिथ्यात्वं ५ अविरतयः १२ कषायाः २५ कार्मणकाययोग १ एवं त्रिचत्वा रिंशत्प्रत्ययाः, हुंति- भवन्ति। तित्थप्पहुणा-- अमुना प्रकारेण पूर्वं तीर्थकर प्रभुणा तीर्थकरदेवेन मार्गणासु प्रत्यया इति गणिता इति, पश्चाद्गण-धरदेवादिभिः शब्दरूपेण गाथादिबन्धेन मार्गणासु प्रत्यया भणिता इति शेषः॥६॥ अन्वयार्थ- (अणाहारे) अनाहारक जीवों के (कम्मेयर जोय हीणया) कार्मण काय योग से अन्य चौदह योगों को छोड़कर शेष (तेदाल) तेतालीस आस्रव (हुंति)होते हैं। (इति) इस प्रकार (तित्थप्पहुणा) तीर्थंकर प्रभु ने (मग्गण) मार्गणाओं में (पच्चया) आस्रव (गणिया)कहे हैं उन्हीं को मेरे द्वारा(भणिया) कहा गया। भावार्थ- अनाहारक जीवों के कार्मण काययोग अन्य चौदह योगों को छोडकर तेतालीस आस्रव हाते हैं अर्थात् पांच मिथ्यातत्व पच्चीस कषायें कार्मण काययोग और बारह अविरति इस प्रकार अनाहारक जीवों के तेतालीस प्रत्यय होते हैं। इस प्रकार तीर्थकर देव ने मार्गणाओं में प्रत्यय (आस्रव)कहे, पश्चात गणधर देव ने शब्द रूप से गाथादि रूप से मार्गणाओं में प्रत्यय कहे। ___ इति मार्गणासु प्रत्यया निर्दिष्टाः। इस प्रकार मार्गणओं में आस्रव कहे गये। अथ चतुर्दशजीवसमासेषु यथासंभवं सप्तपंचाशत्प्रत्ययाः कथ्यन्ते; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002711
Book TitleSiddhantasara
Original Sutra AuthorJinchandra Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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