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(४४) अत्र यथासंख्यं, पण- मिथ्यात्वं पंचप्रकारं। दुदस- अविरतयो द्वादश। पणवीसंकषायाः पंचविंशतिः। पण्णरसा योगाः पंचदश। हुंति- भवन्ति। कथंभूता एते? बंधहेदू- कर्मबन्धहेतवः कर्मबन्धकारणानीत्यर्थः॥४८॥
अब चौदह मार्गणाओं में सत्तावन आस्रवों को यथा संभव बालबोध के लिए उनके नामों को कहते हैं।
अन्वयार्थ- ४८-- (मिच्छत्तम्) मिथ्यात्व (पण) पांच (अविरदी) अविरति (दुदस) वारह (तह) तथा (कसाय) कषाय (पणवीस) पच्चीस (य) और (जोगा) योग (पण्णरसा) पन्द्रह (पच्चायाभेया) आस्रव के भेद (हुंति) होते हैं।
भावार्थ- एकान्त, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान इस प्रकार मिथ्यात्व के पांच भेद होते हैं कहा भी है - गाथार्थ – मिथ्यात्व के उदय से होने वाला तत्वार्थ का अश्रद्धान मिथ्यात्व है। उसके एकान्त, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान ये पांच भेद हैं।
पांच इन्द्रिय एक मन तथा छह काय सम्बन्धी इस प्रकार बारह प्रकार की अविरति है कहा भी है कि
__ गाथार्थ- छह इन्द्रियों के विषय में अविरति होती है और छह प्रकार के जीवों के विषय में अविरति होती है इस तरह इन्द्रिय अविरति और प्राणि अविरति की अपेक्षा अविरति बारह प्रकार की है।
अनन्तानुबन्धी- अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान संज्वलन कोध, मान, माया, लोभ सोलहकषाय, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक वेद नौ नोकषाय इस प्रकार २५ कषायें। सत्य, असत्य, उभय अनुभय मन वचन योग के भेद से आठ योग, औदारिककाययोग, औदारिक मिश्रकाययोग, वैक्रियिककाययोग, वैक्रियिकमिश्रकाययोग, आहारककाययोग, आहारकमिश्रकाययोग, और कार्मणकाययोग ये सात काययोग इस प्रकार पन्द्रह योग ये सभी मिलकर आस्रव के सत्तावन भेद होते हैं।
नरक गति एवं तिर्यंच गति में आस्रव
आहारोरालियदुगित्थीपुंसोहीण णिरइ इगिवणं। आहारयवेउब्विय दुगूण तेवण्ण तिरियक्खे।। ४६॥
आहारौदारिकद्विकस्त्रीहीना नरके एकपंचाशत्। आहारकवैक्रियिकद्विकोनाः त्रिपंचाशत् तिरश्चि।।
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