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________________ आहारेत्यादि। णिरइ- नरकगतो आहारकाहारकमिश्रद्वयं औदारिकौदारिकमिश्रद्वयं स्त्रीवेदपुंवेदद्वयं एतैः षड्भिींनाः, इगिवण्णं -- अन्ये उद्धरित्ता एकपंचाशत्प्रत्यया भवन्ति। आहारयेतादि- तिरियक्खे- तिर्यग्गतौ आहारकतन्मिश्रद्वयं वैक्रियिकतन्मिश्रद्वयं एतैश्चतुर्भिरूना अपरे तेवण्ण- त्रिपंचाशत् आस्त्रवा भवन्ति।। ४६।। अन्वयार्थ- (णिरइ) नरक गति में (आहारोरालिय दुग) आहारक, आहारक मिश्र काययोग, औदारिक, औदारिक मिश्र काययोग (इत्थीपुंसोहीण) स्त्री और पुरुष इन दो वेदों को छोड़कर (इगिवण्णं) इक्यावन आस्रव होते हैं। ((तिरियक्खे) तिर्यंच गति में (आहारय वेउव्विय दुगूण) आहारक, आहारक मिश्र, वैक्रियिक और वैक्रियिक मिश्र काययोग को छोड़कर (तेवण्ण) शेष त्रेपन आस्रव होते हैं। मनुष्य गति और देव गति में आस्रव कहते हैं - पणवणं वेउवियदुगूण मणुएसु हुंति बावणं । संढाहारोरालियद्गेहिं हीणा सुरगईए। ५०॥ पंचपंचाशत् वैक्रियिकतिकोना मनुजेषु भवन्ति द्विपंचाशत् षंढाहारौदारिकद्विकैहीनाः सुरगत्याम्।। मणुएसु- मनुजेषु मनुष्यगतौ, वेउव्वियदुगूण- वैक्रियिकतन्मिश्रद्विकोनाः, पणवण्णं- पंचपंचाशत्प्रत्ययाः, हुंति- संभवन्ति । बावण्णं संढाहारोरालियदुगेहिं हीणा सुरगईए- सुरगतौ नपुंसकवेदश्चाहारकतन्मिश्रद्वयं च औदारिकौदारिकमिश्रद्वयं च तैः पंचभिर्हीनाः, बावण्णं- द्वापंचाशदास्रवाः स्युः। इति गतिमार्गणासु प्रत्यया निरूपिताः॥५०॥ अन्वयार्थ ५०-- (मणुएसु) मनुष्यगति में (वेउव्वियदुगूण) वैक्रियिक काय योग और वैक्रियिक मिश्रकाय योग को छोड़कर शेष (पणवण्णं) पचपन आस्रव होते हैं। (सुरगईए) देवगति में (संढाहारोरालिय दुरोहिं) नपुंसक वेद, आहारक, आहारक मिश्र काययोग औदारिक और औदारिक मिश्र काययोग को छोड़कर शेष (बावण्णं) बावन आस्रव (हृति) होते हैं। छह गाथाओं द्वारा क्रम से इन्द्रिय, काययोग, वेद एवं कषाय मार्गणा को कहते हैं। मणरसणचउक्वित्थीपुरिसाहारयवेउब्बियजुगेहिं एयक्खे मणवचिअडजोगेहिं हीण अडतीसं।। ५१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002711
Book TitleSiddhantasara
Original Sutra AuthorJinchandra Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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