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(६)
कार्मणे अष्टौ स्त्रीपुंसोः
पंचाक्षगतचत्वारः॥
मिस्से अपुण्णसग इगिसण्णी - औदारिकमिश्र काययोगे अपर्याप्ताः सप्त, इगिसण्णी - एकः संज्ञिपर्याप्तक एवमष्टौ जीवसमासाः । ते के? एकेन्द्रियसूक्ष्मबादरद्वित्रिचतुरिन्द्रियपंचेन्द्रियसंज्ञ्यसज्ञिनोऽपर्याप्ताः सप्त, एकः पर्याप्तः संज्ञी स च केवलिसमुद्धातापेक्षया ग्राह्यः, एवमष्टौ जीवसमासा औदारिकमिश्रकाययोगे भवन्तीति विज्ञेयं। वेउव्वियादिचउसु च - वैक्रियिकादिचतुर्षु काययोगेषु चकारादेकः संज्ञी । अत्र भेदः- वैक्रियिककाययोगे पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्त इत्येको भवति । वैक्रियिकमिश्रकाययोगे पंचेन्द्रियसंज्ञ्यपर्याप्तको भवति । आहारककाययोगे पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्तको भवति । आहारकमिश्रकाययोगे पंचेन्द्रियसंज्ञ्यपर्याप्तको भवति । कम्मइए अट्ठ - कार्मणकायोगे औदारिकमिश्रकायोक्ता अष्ट जीवसमासा भवन्ति । त्थीपुंसे पंचक्खगयचउरो - स्त्रीवेदे पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्तापर्याप्तपंचेन्द्रियासज्ञिपर्याप्तापर्याप्ता चत्वारः । पुंवेदे
एते
स्त्रीवेदोक्ताश्चत्वारो जीवसमासा भवन्ति ॥ ६ ॥
अन्वयार्थ - (मिस्से) औदारिक मिश्र काययोग में ( अपुण्णसग) अपर्याप्तक सात (इगिसण्णी) एक संज्ञी पर्याप्तक इस प्रकार आठ जीव समास होते हैं । (वेउव्वियादिचउसु सकायिक) वैक्रियिकादि चार काययोग में एक संज्ञी पर्याप्तक जीव समास होता है । (कम्मइए) कार्मणकाययोग में (अट्ठ) आठ (च) और (त्थीपुंसे) स्त्रीवेद और पुंवेद में (पंचक्खगय चउरो) पंचेन्द्रियगत चार-चार जीव समास होते हैं। भावार्थ - एकेन्द्रियों के सूक्ष्म अपर्याप्तक, बादर अपर्याप्तक दो जीवसमास । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक, त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक, पंचेन्द्रिय के संज्ञी और असंज्ञी अपर्याप्तक, इस प्रकार सात जीव समास और एक संज्ञी पर्याप्तक केवली समुद्धात की अपेक्षा, इस प्रकार आठ जीव समास औदारिक मिश्रकाययोग में होते हैं इस प्रकार जानना चाहिए। वैक्रियिक काययोग में पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक एक जीवसमास होता है। वैक्रियिक मिश्र काययोग में संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक एक जीव समास होता है । आहारक काययोग में पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक और आहारक मिश्रकाययोग में पंचेन्द्रिय संज्ञी अपर्याप्तक एक जीव समास होता है। कार्मणकाय योग में औदारिक मिश्रकाययोग के समान आठ जीवसमास होते हैं । स्त्रीवेद में पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक और अपर्याप्तक तथा पंचेन्द्रिय असंज्ञी पर्याप्तक और अपर्याप्तक, इस प्रकार चार जीव समास जानना चाहिए। पुंवेद में स्त्रीवेद के समान चार जीव समास जानना चाहिए।
संढे कोहे माणे मायालोहे य कुमइकुसुईये य ।
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