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(५)
पंचाट
द्वीन्द्रियादिपूर्णाः
ओराले ।। दस तसकाए - सकायेषु द्वित्रिचतुरिन्द्रियपंचेन्द्रियेषु दश जीव समासा भवन्ति । ते के? द्वित्रिचतुरिन्द्रियाः पर्याप्तापर्याप्ता इति षट् । पंचेन्द्रियसंज्ञ्यसंज्ञिनः पर्याप्तापर्याप्ता इति चत्वार एवं दश । सण्णी सच्चमणाईसु सत्तजोगेसु-सत्यमनः प्रभृतिषु सत्यासत्योभयानुभयमनोयोगेषु सत्यासत्योभयवचनयोगेषु सप्तसु योगेषु प्रत्येकं एकः संज्ञिपर्याप्तको जीवसमासो भवति । वेइंदियादिपुण्णा पण मट्ठे अष्टमेऽनुभयवचनयोगे द्वीन्द्रियादयः पर्याप्ताः पंच जीवसमासा भवन्ति । तानाह द्वित्रिचतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रियसंज्ञ्यसंज्ञिनः पर्याप्ता इति पंच । सत्त ओराले -- औदारिकशरीरे सप्तजीवसमासा भवति । एकेन्द्रियसूक्ष्मबादरपर्याप्ता इति द्वयं द्वित्रिचतुरिन्द्रियपंचेन्द्रियसंज्ञ्यसंज्ञिनः पर्याप्ता इति पंच, एवं सप्तजीवसमासा औदारिककाययोगे भवन्तीत्यर्थः ॥ ५ ॥
सप्त
अन्वयार्थ - (तसकाए दस ) सकायिकों में दश ( सच्च मणाईसु सत्त जोगेसु) सत्य मनोयोग को आदि लेकर सात योगों में ( सण्णी) एक संज्ञी पर्याप्तक जीव समास होता है। (अट्ठे) आठवें अनुभय वचनयोग में ( वेइंदियादिपुण्णा) द्वीन्द्रियादि पर्याप्तक (पण) पंच जीव समास होते हैं । ( ओराले सत्त) औदारिक काययोग में सात जीव समास होते हैं।
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भावार्थ- सकायिक जीवों में दश जीव समास होते हैं द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रियजीवों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक इस प्रकार छह । पंचेन्द्रियों में संज्ञी, असंज्ञी के पर्याप्तक और अपर्याप्तक इस प्रकार चार । इस प्रकार समस्त सकायिक जीवों में दस जीव समास पाये जाते हैं । सत्य, असत्य, उभय और अनुभय मनोयोगों में तथा सत्य, असत्य, उभय वचनयोग इन सात योगों में एक संज्ञी पर्याप्तक जीव समास होता है। अनुभय वचन योग में द्वीन्द्रिय पर्याप्तक, त्रीन्द्रिय पर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक, पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक और असंज्ञी पर्याप्तक इस प्रकार पाँच जीव समास होते हैं । औदारिक काय योग में सात जीव समास- एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्तक बादर पर्याप्त द्वीन्द्रिय पर्याप्तक, त्रीन्द्रिय पर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक, पंचेन्द्रिय असंज्ञी पर्याप्तक और पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक इस प्रकार सात जीव समास औदारिक काययोग में पाये जाते हैं ।
मिस्से अपुण्णसग इगिसण्णी वेउब्वियादिचउसु च । कम्मइए अट्ठ-त्थी-पुंसे पंचक्खगयचउरो ।। ६॥ मिश्र अपूर्णसप्त एकसंज्ञी विगूर्विकादिचतुर्षु च ।
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