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________________ प्रस्तावना - XVI ६. खरतरगच्छालङ्कार-युगप्रधानाचार्य-गुर्वावली - जिनपालोपाध्याय की सम्भवतः यह अंतिम रचना है। यह एक ऐतिहासिक एवं महत्त्वपूर्ण कृति है। खरतरगच्छ के आचार्य वर्द्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनचन्द्रसूरि; अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि एवं मणिधारी जिनचन्द्रसूरि के जीवन-चरितों का आलेखन लेखक ने गुरु-परम्परा से श्रुत-आख्यानों पर किया है किन्तु सं० १२२५ से सं० १३०५ आषाढ शुक्ला १० तक आचार्य जिनपतिसूरि एवं जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) का व्यक्तित्व एवं कृतित्व का दर्शन आँखों-देखी घटनाओं के आधार पर किया है। संवतानुक्रम से प्रत्येक विशिष्ट घटनाओं का उल्लेख इसमें किया गया है। यह कृति मानों जिनपालोपाध्याय की दफ्तर-बही (दैनिक डायरी) हो। गुर्वावली की घटनाओं को देखते हुए यह माना जा सकता है कि जिनपाल प्रायः जिनपतिसूरि के साथ रहे हों और पृथ्वीराज चौहान आदि की सभा में शास्त्रार्थ के समय में भी मौजूद हो! अन्यथा ऐसा आँखों-देखा सजीव वर्णन सम्भव नहीं हो सकता। इस गुर्वावली में अन्तिम प्रसंग १३०५ आषाढ शुक्ला १० का है, पश्चात् लेखक ने प्रशस्ति दे दी है। अतः इसका रचना-समय १३०५ स्वीकार किया जा सकता है। दिल्ली (दिल्ली) - वास्तव्य साधु साहुलि के पुत्र साधु हेमा की अभ्यर्थना से जिनपाल ने इसकी रचना की है। यह ग्रंथ सिंघी जन ज्ञानपीठ, भारतीय विद्याभवन, बम्बई से मुद्रित हो चुका है। इसका द्वितीय संशोधित संस्करण मेरे द्वारा सम्पादित होकर प्राकृत भारती अकादमी की ओर से २००० में प्रकाशित हो चुका है। इसकी एकमात्र प्रति क्षमाकल्याण-भण्डार बीकानेर में है। ७. स्वप्नविचार - प्राकृत-भाषा में २८ गाथायें है। इसमें श्रमणभगवान् महावीर के समय में मध्यमपापा के राजा हस्तिपाल ने जो ८ स्वप्न देखे उनका फल दिखाया गया है। अप्रकाशित है। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, शाखाकार्यालय बीकानेर, श्रीपूज्य श्रीजिनचारित्रसूरि-संग्रह-ग्रंथांक २९४, लेखन सं० १४१८ की प्रति में यह कृति प्राप्त है। ८. स्वप्नविचार-भाष्य -जैन ग्रन्थावली में लिखा है कि इसकी भाषा प्राकृत है, ग्रंथाग्रन्थ ८७५ है और इसकी प्रति पाटण-भण्डार नं० ५ में है। यह प्रकाशित है। ९. संक्षिप्त पौषधविधिप्रकरण - यह प्राकृत-भाषा में १५ आर्याओं में ग्रथित है। इसमें श्रावक के पौषध ग्रहण करने की विधि प्रतिपादित हे। इसकी प्रेसकॉपी श्रीअभय जैनग्रन्थालय, बीकानेर में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002705
Book TitleDharmshiksha Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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