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________________ प्रस्तावना - XV १.षट्स्थानक-प्रकरण-वृत्तिः - इस ग्रंथ के मूलकर्ता खरतरगच्छीय जिनेश्वरसरि प्रथम हैं। मूल ग्रंथ प्राकृत में है। सं० १२६२ माघ शुक्ला ८ को श्रीमालपुर में इस टीका की रचना हुई है। इस टीका का संशोधन स्वयं आचार्य जिनपतिसूरि ने किया है। श्लोक परिमाण १४९४ है । यह टीका जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार सूरत से प्रकाशित हो चुकी है। २. उपदेशरसायन-विवरणम् - इस अपभ्रंशभाषा में ग्रथित लघु-काव्य के प्रणेता युगप्रधान जिनदत्तसूरि हैं। पद्धटिका छन्द में ८० पद्य हैं। इस पर गणनायक जिनेश्वरसूरि द्वितीयके आदेश से विवरण की रचना सं० १२९२ में हुई है। विवरण का श्लोक परिमाण ४७९ है। यह विवरण अपभ्रंश काव्यत्रयी में ओरियन्टल इन्स्टीच्यूट बड़ौदा से प्रकाशित हो चुका है। ३. द्वादशकुलक-विवरणम् - इस ग्रंथ के प्रणेता आचार्य जिनवल्लभसूरि हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें बारह कुलक हैं। प्राकृत भाषा में रचित यह औपदेशिक ग्रंथ है। इस पर गणनायक जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) के निर्देश से सं० १२९३ भाद्रपद शुक्ला १२ को प्रस्तुत टीका की रचना पूर्ण हुई है। टीका विशदविवेचनयुक्त है। इस टीका का ग्रंथाग्रं ३३६३ है। यह टीका जिनदत्तसूरि-ज्ञानभण्डार सूरत से प्रकाशित हो चुकी है। ४. पञ्चलिङ्गी-विवरण-टिप्पणम् - श्री जिनेश्वरसूरि (प्रथम)-रचित इस ग्रन्थ पर युगप्रवरागमजिनपतिसूरि ने बृहद्वृत्ति की रचना की। इस बृहट्टीका में यत्रतत्र क्लिष्ट एवं दुर्बोध शब्दों का व्यवहार हुआ है। उसी पर यह टिप्पणक है। इस टिप्पणक का रचना-काल पं० लालचन्द्र भगवानदास गान्धी ने अपभ्रंशकाव्यत्रयी की भूमिका (पृ० ६९) में १२६३ माना है। यह टिप्पणक बृहट्टीका के साथ जिनदत्तसूरि-ज्ञान-भण्डार सूरत से प्रकाशित है। मुद्रित संस्करण में प्रशस्ति नहीं है। ५. चर्चरीविवरणम् - युगप्रधान जिनदत्तसूरि ने बाग्जड-देशस्थित व्याघ्रपुर में इसकी रचना की है। अपभ्रंश-भाषा का यह गेयकाव्य है, इसमें ४७ पद्य हैं। इसमें विधिपक्ष का दृढता से समर्थन किया गया है। इस पर सं० १२९४ चैत्र कृष्णा ३ को जिनेश्वरसूरि द्वितीय के निर्देश से इस टीका की रचना हुई है। टीका की भाषा प्रौढ एवं प्राञ्जल है। यह टीका भी अपभ्रंशकाव्यत्रयी में ओरियन्टल इन्स्टीच्यूट बड़ौदा से प्रकाशित हो चुकी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002705
Book TitleDharmshiksha Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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