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________________ अर्थ - जो एक प्रदेशी परमाणु को बहुप्रदेशी कहता है उसे द्रव्य में पर्याय का उपचार करने वाला असद्भूत व्यवहार नय जानना चाहिए । विशेषार्थ पुद्गल का एक परमाणु एक प्रदेशी होता है । उसके दो आदि प्रदेश नहीं होते । किन्तु वही परमाणु अन्य परमाणुओं के साथ मिलने पर उपचारसे बहुप्रदेशी कहा जाता है । परमाणुओं के मेल से जो स्कन्ध बनता है वह पुद्गलकी विभावपर्याय है और परमाणुओं पुद्गल द्रव्य है । दोनों ही पौगलिक होने से एक जाति के है। इस प्रकार स्वजाति द्रव्य में स्वजाति पर्याय का आरोपण करने वाला असद्भूत व्यवहार नय है । - स्वजाति गुण में स्वजाति द्रव्य का आरोपण करने वाला असद्भूत व्यवहार नय रूवं पि भणइ दव्वं ववहारो अण्णअत्थसंभूदो । सेओ जह पासाणो गुणेसु दव्वाण उवयारो ||58|| रूपमपि भणति द्रव्यं व्यवहारोऽन्यार्थसंभूतः । श्वेतो यथा पाषाणो गुणेषु द्रव्याणामुपचारः ||58।। अर्थ अन्य अर्थ में होने वाला व्यवहार रूप को भी द्रव्य कहता है जैसे सफेद पत्थर । यह गुणों में द्रव्य का उपचार है । विशेषार्थ सफेद रूप है और पत्थर द्रव्य है - दोनों ही पौद्गलिक होने से एक जातीय है। सफेद रूप में पाषाण द्रव्य का उपचार करना स्वजाति गुण में स्वजाति द्रव्य का उपचार करने वाला असद्भूत व्यवहारनय है । - - स्वजाति गुण में स्वजाति पर्याय का आरोपण करनेवाला असद्भूत व्यवहार नय णाणं पि हि पज्जायं परिणममाणं तु गिणए जो हु । वबहारो खलु जंपइ गुणेसु उवरियपज्जाओ ||59|| Jain Education International 43 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002704
Book TitleLaghu Nayachakrama
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherPannalal Jain Granthamala
Publication Year2002
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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